पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२२८

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( . .१७१ ) मुबारक हो । किसान-सभा वाले अगर गांधी जी को अहिंसा को नहीं मानते तो उन्हें साफ कह तो देते हैं। मौके पर अमली तौर से धोखा तो नहीं देते। बल्कि ईमानदारी से जहाँ तक होता है उसके अनुसार काम करते हैं। इसो सम्बन्ध की एक दूसरी घटना बिहार की है। बिहार पर और खासकर उसकी अहिसा पर गांधी जी को नाज है। अकसर वे इस बात को लिखते और कहते रहते हैं। मगर बिहार के नामी-गरामी नेता लोग कहाँ तक अहिंसा को मानते और गांधी जी को कितना धोखा देते हैं इसका ताजा नमूना हाल के बिहार शरीफ वाले दंगे में मिला है। इसका पता हमें जेल में ही लगा है जब कि पटना जिले के एक कांग्रेसो साथी जेल में हाल में ही आये हैं। उनने आप बीती हमें एक दिन सुनाई। उनका और जिन नेताओं से उन्हें साबका पड़ा उनका नाम लेना ठीक नहीं। बिहार शरीफ में हिन्दू-मुसलिम दंगा शुरू हो जाने के बाद सदाकत आश्रम के दो बड़े नेता, जो न सिर्फ प्रान्तीय कांग्रेस के औफिस के चलाने के लिये बहुत पुराने जवाबदेह श्रादमी माने जाते हैं, बल्कि खांटी गांधी- वादी भी हैं, मोटर पर चढ़के बिहार शरीफ जाने के लिये तैयार हुए । उनमें एक हिन्दू है और एक मुसलमान । उनने सोचा कि पटना जिले के किसी हिन्दू कार्यकर्ता को भी साथ ले लें तो ठीक हो । संयोग से हमारे वे -कांग्रेसी साथी वहीं थे। बस, हुम्म हुया कि साथ चलना होगा । साथी को सारी बातें मालूम थीं,। उनने कहा कि मेरे पास रिवाल्वर तो है नहीं। में कैसे चलूँगा ? याद रहे कि हमारे साथो सत्याग्रह करके जेल याये हैं। उनने फिर कहा कि अगर मुझे भी श्रार लोग एक रिवाल्वर दें तो साथ चलने को तैयार हूँ । इस पर लीडरों ने कहा कि आप हम दोनों के बीच में हमारी ही मोटर पर बैठ के चलिये। हम जो अलग मोटर पर पीछे पीछे चलने को कहते थे वह इसीलिये कि आपके पास रिवाल्वर है नहीं। मगर अगर श्राप इसके लिये तैयार नहीं हैं तो हमारे बीच में बैठ के हमारी ही मोटर पर चलिये । मगर इस पर भी साथी तैयार न हुए। तब उनसे कट्टा गरा