पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५ सन् १९३७ ई० की जनवरी का महीना था। फैजपुर कांग्रेस से हम ताजे ताजे वापिस आये थे। असेम्बली-चुनाव की तारीखें सर पर थीं। जल्दी जल्दी एक बार पटना जिले का दौरा ऐन चुनाव से पहले कर लेना था। मेरे साथ कांग्रेस के दूसरे भी नेता उस दौरे में शरीक थे। बखतियारपुर में एक मिटिंग करके बिहार शरीफ जाना था। शाम को वहीं मिटिंग थी। इस दान हरनौत थाने वालों का हठ था कि रास्ते में ही यह जगह है और ऐन सड़क पर ही । इसलिये यहाँ भी एक सभा जरूर हो ले । हमने इसकी मंजूरी दे दी थी। लोगों ने मीटिंग की तैयारी खासी कर ली थी। मगर हमारे विरोधी भी चुप न थे । वह इलाका ज्यादातर उन लोगों का है जिन्हें कुर्मी, कुर्मवंशी आदि कहते हैं । और जातियों की अपेक्षा कुर्मी लोग उधर ज्यादा बसते हैं। चुनाव के जमाने में बदकिस्मती से जाति- पाँति की बातें खूब चलती हैं । मगर वहाँ तो एक और भी वजह थी जिससे ये बातें तेज हो गई। बखतियारपुर बाढ़ सब-डिविजन में पड़ता है और उससे दक्षिण बिहार सब-डिविजन है। कांग्रेस के भीतर ही बाढ़ और बिहार की सीटों को लेकर तनातनी चलती रही । बाढ़ के ही एक कुर्मी सज्जन, जो वकील है, चुने जाने के लिये बहुत ही लालायित थे। मगर कांग्रेसी नेताओं ने किसी कारण से उन्हें बिहार के लिये नामजद करना चाहा था तो. वे तैयार न हुए और भीतर ही भीतर उनने गुटबन्दी ऐसी कर ली थी कि बिहार से एक गैर कांग्रेसी कुर्मी चुन लिये जायें । तैयारी ऐसी थी कि ऐन मौके पर कोई गलती जान-बूझ के कर दी जाय और दूसरा होने न पाये। इसीलिये उनने पीछे कबूल कर लिया था कि अच्छा, मैं बिहार को ही सीट से तैयार हो जाता हूँ। फिर भी भीतर ही भीतर तैयारी कुछ और ही जन