पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२३१

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( १७४ ) थी। उनकी बदबख्ती से टीक नामिनेशन केही समय उस तैयारी का पता चल जाने के कारण उनका नामिनेशन कांग्रेस की तरफ से दाखिल न किया जाके एक और कुओ सजन का ही दाखिल किया गया । इससे कुमी समाज में कुछ खलबली मची । क्योकि चुनाव को लेके उस जाति के भीतर ही दो दल हो चुके है। कांग्रेस विरोधी कुर्मी समजन का भी नामिनेशन दाखिल हुया था। उनका असर उस इलाके में ज्यादा था। जिला कांग्रेस कमिटी का सभापति भी मैं ही या। किसान सभा की तो बात थी दी। विरंथी लोग जीत जाते अगर मैं जरा भी उदासीन हो जाता। इसकी कोशिश भी की गई। कांग्रेसी उमीदवार एक जालिम जमीटार है। इसलिये भी वे लोग सोचते थे कि अगर मैं उनकी मदद में न जाऊँ तो वे हारें में जरमैंने उनकी जमींदारी में उन्हों की जाति के किसानों का पक्ष लेके काफी यान्दोलन भी बदले किया था। इससे भी विरोधियों को श्राशा थी कि मैं चुनाव के मामले में दोना पड़ जाऊँगा। मगर मेरी तो मजबूरी थी। जिला कांग्रेस कमिटी की तरफ से मुझे काम करना हो.था। जबावदेही भी मेरे ऊपर विजय के सम्बन्ध की थी ही! फिर देईमानी कैसे कर सकता था। यदि ऐन मौके पर जिला के सभापतित्व से हटता तो भी टीक न होता । हो, मैं चाहता तो या कि वे जालिम हजरत नामजद न हो । मगर कांग्रेसी नेता लोगों को इसकी पर्वा कहाँ थी? वे तो सभी लोगों को उस समय असेम्बली में भेज रहे थे-ऐसों को भी जो न सिर्फ सालिम जमींदार थे, बल्कि दरअसल कांग्रेस से अब तक जिनका कोई ताल्लुक न था। इस बांधली के विरुद्ध प्रान्तीय वर्किग कमिटी में में बराबर लड़ता था। मगर अकेला ही था। बाकियों ने तो वैना ही तय कर लिया था। अजीव हालत थी। पर करता ही अाखिर क्या ? ऐसी दशा में मेरे ही ऊपर वहाँ के कांग्रेस विरोधियों का बोध था। वे जानते थे कि अगर मैं वहाँ न जाऊँ तो कांग्रेसी उमीदवार को चुटकी मार के वे हरा देंगे। कुमी जाति में भी दोनों उमीदवार दो अलग बिरादरियों केये और अपनी अपनी बिरादरी को लेके लोग परीशान थे। इसलिये १