पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२३३

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( १७६ ) उसके बाद उसके दलवाले जाने क्या क्या करते । हो सकता था कि वहीं करारी मार-पीट हो जाती । यही सोच के मैंने लोगों को रोका । परिणाम हमारे लिये सुन्दर हुया । मीटिंग वेखटके होती रही। मेरी चोट पर लोगों को दवा की सूझी । पर, मैंने रोक दिया । चोट की जगह सूज गई जरूर, वह काली भी हो श्राई । मगर मैं ठंडा रहा और सभा में खड़ा होके बोला भी। लोग ताज्जुब में थे। पर मुझे पर्वा न थी। हाय हाय करना या 'चिल्लाना तो मैंने श्राज तक जाना ही नहीं। फिर वहाँ कैसे हाय हाय करता ! मीटिंग के बाद बिहार शरीफ जाने पर चोट को धीरे धीरे गर्म पानी से धोया गया ताकि दर्द शान्त हो । वहाँ भी सनसनी थी। मगर मैं तो वहाँ की सभा में भी वरावर बैठा रहा। बोला भी । इस प्रकार वह दौरा पूरा हुा । कांग्रेसी उमीदवार तो जीते और अच्छी तरह जोते । मगर दो साल गुजरने के बाद हालत कुछ और ही हो गई । मुझे निमंत्रण मिला कि हरनौत में किसान-सभा होगी। खूनी तो यह कि जो लोग पहली बार मेरे सख्त दुश्मन थे वही इस बार मेरी सभा करा रहे थे। उनने मेरे स्वागत की तैयारी भी सुन्दर की थी। मैंने निमंत्रण स्वीकार किया खुशी खुशी । वहाँ जाके देखा तो सचमुच समाँ ही कुछ और थी। मीटिंग भी ठाठ-बाट से हुई । उनने प्रेम से मेरा अभिनन्दन भी किया। स्वागताध्यक्ष ने जो भाषण दिया वह दूसरे ढंग का था । लोग हैरत में थे। मैं भी चकित था। इतना तो सबने माना कि दो साल के भीतर किसान- सभा की ताकत बढ़ी है काफी । इसीलिये पहले के दुश्मनों को भी लोहा मानना पड़ा है, चाहे उनका मतलब इस बार कुछ भी क्यों न हो । हमारे लिये यही क्या कम गौरव की बात थी कि हमारे दुश्मन भी हमारे ही झंडे के नीचे आके मतलब साधने की कोशिश करें ? हाँ, हमें सजग रहना जरूरी था कि कहीं किसान-सभा बदनाम न हो जाय । सो तो हम थे ही और आज भी हैं। उस बदली हालत को देख के हमने यह समझने की भूल कभी न की कि वे लोग किसान सभा के पक्के भक्त बन गये। ऐसा मानने में ही तो खतरा था और हमने ऐसा किया नहीं। लेकिन उन्हें मजबूरन .