पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२३८

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२६ सन् १९३८ ई० के गर्मियों का मौसम था । मेरा दौरा किसान- आन्दोलन के सिलसिले में ही बाढ़ और बिहार सब-डिविजनों में हो रहा था। बाढ़ शहर के पास के ही एक बड़े गाँव में सभा करने के बाद मैं घोर देहात में गया। वह देहात बाढ़ से दक्षिण है जिसे टाल का इलाका कहते हैं। मिट्टी निहायत ही चिकनी और काली है। बरसात में तो पाँव में चिपक जाती है ऐसी, कि जल्द छूटना जानती ही नहीं। मगर गर्मियों में सूख के ऐसी सख्त बन जाती है कि कंकड़ों की तरह पाँवों में चुभती है और काट खाती है। दूर दूर तक पेड़-वेड़ नजर आते नहीं। कहीं कहीं गाँव होते हैं । बरसात में पचासों मील लम्बी और बीसियों मील चौड़ी उस जमीन पर केवल जल ही नजर पाता है। बीच बीच में गाँव ऐसे ही दीखते हैं जैसे समुद्र में टापू । लगातार तीन-चार महीने यही नजारा दीखता है। सिर्फ किश्तियों पर चढ़के ही उन गांवों में जा सकते हैं । उनी टाल के इलाके का एक भाग, जो बाढ़ से बहुत ज्यादा पूर्व और चाल के आखिरी हिस्से पर पड़ता है, बड़हिया टाल कहा जाता है। बड़हिया एक बड़ा सा गाँव जमींदारों का टाल के उत्तरी सिरे पर रेलवे का स्टेशन है, जैसे बाढ़, मुकामा वगैरह । इन बड़े बड़े गांवों की जमींदारियाँ उस टाल में हैं। इसलिये उस राल के बनावटी टुकड़े बन गये हैं सिर्फ जमींदारियों को जनाने के लिये। उन्हें ही बड़हिया टाल, मुकामा टाल वगैरह कहा करते हैं। उसी टाल की जमीनो.को लेकर बड़हिया इलाके के किसानों, जो अधिकांश केवल खेत-मजदूर और तथाकथित छोटी जाति के ही हैं, की लड़ाई हमारी कितान-सभा लगातार कई साल तक लड़ती रही है। इस लड़ाई में किसानों पर घोड़े दौड़ाये गये, लाठियां पड़ी, भाले-बड़े लगे, सैकड़ों केस चले, कई सौ जेल गये और क्या क्या न हुा। हमारे कार्य- -