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किन्तु "कर दिखाऊँ" है। और बिना “कर दिखाऊँ" के कोई बात
दिल पर नक्श हो सकती नहीं।
असल में जब कोई पक्का मंसूबा और दृढ़ संकल्प करके जान पर खेल जाता है तो उसके भीतर छिपी अपार शक्ति बाहर आ जाती है। यही दुनिया का कायदा है। ताकत बाहर से नहीं आती । वह हरेक के भीतर ही छिपी पड़ी रहती है, जैसे दूध में मक्खन । जिस प्रकार मथने से मक्खन बाहर आ जाता है, ठीक उसी तरह जान पर खेल के लड़ जाने, भिड़ जाने पर वही मिडन्त मथानी का काम करती है। फलतः छिपी हुई ताकत को बाहर ला खड़ा करती है। बकरी की लड़ाई से यह साफ हो जाता है। कहते भी हैं कि "मरता क्या न करता " अगर मामूली बकरी हँट जाने पर सपरिवार अपने को तीन कुत्तों से बचा सकती है, तो किसान डॅट जाने पर अपने हक की रक्षा क्यों न कर सकेगा ?