पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२४३

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२७ , जब जवाबदेह कार्य और लीडर ऐसा काम कर डालते हैं जिसे व्यवहार- बुद्धि (Common-Sense) मना करती है तो बड़ी दिक्कत पैदा हो जाती है । जनता में काम करना एक चीज है और केवल राजनीतिक चालबाजी दूसरी चीज । अखबारों में खबर छपवा देना कि फौ फलाँ जगह मीटिंगें हुई और अमुक अमुक सजन बोले, यह एक ऐसी बात है जिसे हमारे कार्यकर्त्ता और लीडर आमतौर से पसन्द करते हैं। मीटिंग कैसी थी, उसमें ठोस काम क्या हुआ, या नहीं हुआ, इस बात की उन्हें शायद ही पर्वा होती है। मैं इसे न सिर्फ गैर जवाबदेही मानता हूँ, बल्कि ठगी समझता हूँ। बाहरी दुनियाँ पर चन्द लोगों के प्रभाव और नेतृत्व का असर इससे भले ही जमे । मगर धोखा होता है। जनता का काम इससे कुछ भी होता नहीं। फिर भी हम इस प्रवाह में बहे चले जाते हैं। अखबारों की रिपोर्ट इसी तरह की अक्सर हुआ करती हैं। हम इतने से ही सन्तोष करते हैं। अपनी सालाना रिपोर्टों की तोदें भी इन्हीं बलगमी रिपोटों से भर बालते हैं । बाहरी दुनियाँ हमारी बड़ाई करती है कि हम बहुत काम करते हैं। यदि एक ही दिन में हमारी कई मीटिगों की खबरें छप जाँय तब तो फहना ही क्या ? तब तो हमारी महत्ता और लीटरी आसमान छू लेती है। जब अपनी सफलता का हिसाब हम खुद इन्हीं झूठी रिपोर्टों से लगाते हैं तब तो किसानों और मजदूरों का भला भगवान ही करे ! तब पता लग जाता है कि हम कैसे सच्चे जन-सेवक हैं। हमारे दिलों में पीड़ित जनता की वास्तविक सेवा की आग कैसी जल रही है इसका सबूत हमें मिल जाता है। मगर असलियत तो यह है कि इन हरकतों से गरीबों का उद्धार सात जन्म में भी नहीं हो सकता । वे तो बावजूद इन मीटिंगों के भेड़-बकरियों को तरह कभी एक दल के और कभी दूसरे के हाथों मॅहते ही रहेंगे।