पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२४८

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( १८६) थे। फिर भी काफी भटके । दूर दूर तक कहीं गाँव नजर श्रावे न थे कि किसी से रास्ता पूर्छ । सूनी जगह में पेड़ भी थे नहीं कि रामचन्द्र की तरह सीता का हाल उन्हीं से पूछते । पशु भी नदारद ही थे। यही हालत पक्षियों की थी। बहुत चलने पर कहीं कहीं एकाध हल चलाने वाले किसान मिलते तो उन्हीं से पूछ लेते कि उसफा का रास्ता कौन है ? फिर उसी अन्दाज से आगे बढ़ते । कातिक की धूर भी ऐसी तेज थी कि चमड़ा जला जाता था। प्यास भी लगी थी। मगर रास्ते में पानी पीना आसान न था। कहीं गाँव में कुत्रा मिले तभी तो पिया जाय। मगर कुओं की हालत यह थी कि उनमें मुँह तक पानी भरा था। ऐसी हालत में उनका पानी पीना बीमारी बुलाना था । इसलिये प्याले बढ़ते जाते थे। रास्ते में एक दो गाँव भी मिले। वहाँ हमने उसका की राह पूछ लो और बढ़ते गये। चार या छः मील की तो बात ही मत पूछिये । पाठ नो मोल से कम हमें चलना न पड़ा। बराबर चलते ही रहे। फिर भी तीन घंटे से ज्यादा ही वक्त वहाँ पहुँचने में लगा । हम परीशान थे। मगर चारा भी दूसरा था नहीं । मीटिंग में तो पहुँचना ही था, चाहे जो हो जाय । श्रन्त में एक गाँव मिला। हमने सममा यही उसफा है। किन्तु हमारा खयाल गलत निकला। आगे बढ़े। पता चला कि प्रागे वाला उसफा है। मगर नदी नाले और पानी कीचड़ के करते रास्ता चक्कर काटता था । अन्त में कुछ लोग मिले जो सभा में जा रहे थे। तब हमें हिम्मत हुई कि अब नजदीक श्रा गये । अन्त में बाजे-गाजे वालों की भीड़ मिली। ये लोग स्वागतार्थ जमा थे। हमें इनके भोले-भाले पन पर दया श्राई। हम पहुचेंगे भी या नहीं इसका खयाल तो इनने कियों नहों और स्वागतार्य बाजे-गाजे के साथ जम गये। हमने उमझा कि अब सभा-स्थान पास में ही होगा। मगर सो बात तो थी नहीं । अभी मोला चलना था। बहुत देर के बाद गाँव में पहुँचे तो सारे गाँव में जुलूस घूमता फिरा । हमें क्या मालून कि जुलूस घुमाया जा रहा है ? गौच भो शैतान को प्रांत की तरह लगया है।