( १६२) अलग अलग होगा । जो एक का स्वराज्य होगा, वह दूसरे के लिये बलाः -बन जायगा। वे फिर बोले कि आप तो मिस्टर जिन्ना की सी बात कर रहे हैं। जैसे वह स्वराज्य मिलने के पहले उसका बँटवारा कर रहे हैं श्राप भी वैसा ही कर रहे हैं। इस पर मैंने उन्हें बताया कि आप मेरी स्थिति को ठीक समझी न सके । मैं तो किसानों को सिर्फ यही बताता हूँ कि सजग होके स्वराज्य के लिये लड़ो ताकि वह उनका स्वराज्य हो, न कि जमींदारों और - सूदखोरों का । मगर वह लड़ें जरूर । जमींदार वगैरह न भी लड़ें, तो भी वे अकेले ही लड़ें। अगर वे लोग भी लड़ें तो साथ मिलके ही लड़ें। मगर चौकन्ने रहें ताकि मौके पर जमींदार लोग उन्हें चकमा देके स्वराज्य को सोलहों श्राने हथिया न लें । लेकिन मिस्टर जिन्ना तो मुसलमानों, को. लड़ने से ही रोकते हैं । वे तो नौकरियों और असेम्बली की सीटों का बँटवारा चाहते हैं । उसके लिये हिन्दुओं से मिलके लड़ना नहीं चाहते। बल्कि बार-बार मुसलमानों को लड़ने से रोकते हैं। फिर 'मेरी उनके साथ तुलना कैसी १ क्या कोई कह सकता है कि मैंने, किसान-सभा ने या किसानों ने कांग्रेस की लड़ाई में साथ नहीं दिया है । क्या मैंने कभी किसानों को रोका है ? इसके बाद वे लोग चुर हो गये। मगर किसानों ने सभी बातें समझ ली। मैंने उनसे पूछ दिया कि तुम्हारे गाँव के जमींदार जो नवाब साहब हैं उनके स्वराज्य के लिये लड़ागे या अपने स्वराज्य के लिये। उनने एक -स्वर से सुना दिया कि अपने स्वराज्य के लिये ! तब मैंने कहा कि ये सवाल करने वाले तो नवाब साहब का ही स्वराज्य चाहते हैं, गोकि साफ साफ बोलते नहीं । मगर गोलमोल स्वराज्य का तो यही मतलब ही है। इन्हें डर है कि गोलमोल न कह के अगर स्वराज्य का स्वरूप बनाने लगेंगे तो किसान हिचक जायँगे । जिस स्वराज्य में जमीन के मालिक किसान न हों, अपनी कमाई को पहले स्वयं सपरिवार भोगें नहीं, उन्हें काफी जमीन मिले -नहीं, सूदखोरों से उनका पिंड छूटे नहीं, जमींदारों के जुल्म से उनका
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