पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८ कैसे पार किसान सभा की स्मृतियाँ हैं तो इतनी कि पोये लिखे जा सकते हैं। यह भी नहीं कि केवल कहानियों जैसी हैं। हरेक स्मृति मजेदार है । घटनाओं से पता चलता है कि किन किन संकटों को, कब कत्र, करके सभा की नींव मजबूत की गई है। कई वार तीन तीन, चार चार मील लगातार दौड़ते रहके ही किसी प्रकार सभा-स्थान में पहुँच सका, जैसा कि एक बार पटना जिले के दान्तपुर इलाके मगर पाल दियारे की रामपुर वाली सभा में हुआ था। सवारी का प्रबन्ध वे लोग न कर सके और जब देर से हम शेरपुर पहुंचे तो शाम हो चली थी। यदि कसके चार मील दौड़ते नहीं तो लोग निराश होके चले जाते । इसी प्रकार एक बार खटांगी में, गया जिले में, सभा करनी थी। गया से मोटर से चले। पानी पड़ चुका था। सड़क पर नई मिट्टी पड़ी थी-कच्ची सड़क नई नई बनी थीं। मोटर घुस जाती थी। छे मील में छे घंटे लग गये । रात हो गई। अन्त में मोटर छोड़ के कई मील पैदल रात में ही अन्दाज से गये। तब तक सभा से लोग चले गये थे। मगर चारों ओर पुकारते हुए लोग दौड़े और मीटिंग की तैयारी में लगे। नतीजा यह हुआ कि रास्ते से ही लोग लौट पड़े। देर से तो खटांगी से लोग चले ही ये । इसीलिये रास्ते में ही थे। सभा भी दस ग्यारह बजे रात में जम के हुई और खूब हुई। सबसे मजेदार बात तो ममियावाँ बकाश्त संघर्ष के वक्त हुई। मझियावाँ खटांगी से उत्तर दो तीन मील है । दोपहर को टेकारी पहुंचे थे। वहाँ से ममियावाँ चौदह मील है। बरसात का, दिन, कच्ची सड़क, सवारी श्राने में देर । बस, पैदल ही चल पड़े। छे-सात' मील चल चुकने पर सवारी मिली। बड़ी दिक्कत से अन्धेरा होते होते मझियावाँ पहुँचे । संघर्ष 2