मैं ( २०३ ) घबराया। मुझे पता चला कि उनके वे दोनों ही निश्चय अटल से हैं। इसीलिये मुझे ज्यादा घबराहट हुई। फिर भी उन पर मैंने इसे प्रकट न किया। मैं भी चाहता था कि जरा उनके हृदय को टटोल देखू । उन दोनों में एक बात यह थी कि बहुत ही विश्वासपूर्वक तीन ही महीने के भीतर वे कम से कम पच्चीस हजार पक्के क्रांतिकारियों का सुसंगठित दल तैयार करने का मंसूबा बाँध चुके थे। उनकी बातों से साफ नलकता था कि यह कोई बड़ी बात न थी। इस बारे में उनने औरों को कितनी ही दलीलें दी थीं। वह इस मामले में इतने विश्वस्त और निश्चिन्त मालूम पड़ते थे कि मुझे आश्चर्य होता था। इसीलिये मैंने उससे दलीलें शुरू की। कहा कि मैं तो जिन्दगी में अभी पहली ही बार सुनता हूँ कि तीन ही महीने में अव्वल दर्जे के क्रांतिकारियों की पचीस हजार की संख्या में तैयारी आसानी से की जा सकती है। क्या आप इतिहास में ऐसी एक भी मिसाल पेश कर सकते है। कांग्रेस के चवनियाँ मेम्बर भी अगर हम किसानों और मजदूर्ग के .भीतर बनाने लगें तो तीन महीने में पचीस हजार सदस्य बनाना श्रासान न होगा । मगर उसी मुद्दत में उन्हें संगठित भी कर देना जिमसे जवाबदेही का कोई काम कर सकें, यह असम्भव सी बात है। नातिकारियों का संगठन और भेड़ बकरियों का जमावड़ा क्या दोनो एक ही बातें हैं। मुझे तो हैरत मालूम पड़ती है। किसी भी क्रांतिकारी पार्टी में पाने के लिये बरसों परीक्षा करना ही चाहिये। तभी हम मेम्बरी की असलियत धीर उनकी कमजोरियों समझ सकते हैं, उन्हें हमें बरसों सख्ती से आंचना होगा। तब कहीं कुछी लोग खरे उतर सकते हैं। यह कोई खोगीर की मना तो है नहीं कि जिसे हो पाया भत्तों कर लिया। उनसे दलीलें करने के साथ ही मेरे दिल में यह लीक पेटा हो गया कि क्रांति और रेवोल्यूशन के नाम पर यह एक निहायत ही खतरनाक पार्यो मनेगी अगर उसके मेनर इसी ढंग से बनाये गये। मापन वर्ग और काम-धाम से खाली लोगों में जोई बहुत ऊँचे मनोरथ रखा दोगा,
पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/२६२
दिखावट