( ३२ ) 'काम ही खत्म हो जाता । इसीलिये हम अपने साथियों के साथ सभा स्थान में इँटे रहे। इस बात की इन्तजार भी हम कर रहे थे कि किसान आजाँय तो मीटिंग हो । बा० चतुरानन दास भी न आये थे। उनकी भी प्रतीक्षा थी।
- मगर हमें पता लगा कि जमींदार ने पूरी बन्दिश की है कि कोई भी
मीटिंग में न आये। चारों ओर धमकी के सिवाय तरह-तरह की झूठी अफ- वाहें फैलाई गई हैं कि सभा में गोली चलेगी, मार-पीट होगी, गिरफ्तारी होगी। यह भी कहा गया है कि जाने वालों का नाम दर्ज कर लिया जायगा और पीछे उनकी खबर ली जायगी। इसके सिवाय सभा स्थान के चारों ओर कुछ दूर से ही पिकेटिंग हो रही है कि कोई आये तो लौटा दिया जाय । रास्ते में और जगह-जगह पर उनके दलाल बैठे हुए हैं जो लोगों को रोक रहे हैं । सारांश, मीटिंग रोकने का एक भी उपाय छोड़ा नहीं गया है। हम इन सब बातों के लिये तो तैयार थे ही ; आखिर जमींदारों के न सिर्फ स्वार्थ का सवाल था, बल्कि उनकी शान भी मिट्टी में मिल रही थी। आइन्दा उनको हस्ती भी खतरे में थी ऐसा सोचा जा रहा था। मगर सबसे बड़ी बात यह थी कि हिन्दुस्थान में सबसे बड़े जमींदार महा- राजा दरभंगा की ही जमींदारी में हम जा डटे थे। महाराजा लाठी मारे काले नाग की तरह फू-फू कर रहे थे। उनकी नाक जो कट रही थी। वे डर रहे थे कि मजलूम इलाका सभा में ऐसा टूट पड़ेगा, जैसा कि पहले की मीटिंगों में उनने देखा था । नतीजा यह होगा कि दुखिया किसानों की आँखें खुल जायगी । इसलिये अगर जान पर खेल के उनके नौकर-चाकगें और टुकड़खोरों ने हमारी मीटिंग गेकना चाहा तो इसमें पाश्चर्य की बात क्या थी ? (E.८.१) उन लोगों ने यह किया सो तो किया ही। मगर खाम चतुरानन जी के मकान पर भी चढ़ गये और उन्हें तरह-तरह से धमकाया। ग्राखिर वह भी तो महाराजा की ही जमींदारी में बसते थे। उनके घर घेरा हाले वे सब पड़े रहे । नतीजा यह हुआ कि चतुरानन जी मीटिंग का प्रबन्ध. 9