पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/९३

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( ३८ ) था। मगर इनने तो अपना सब कुछ जमींदार के टुकड़ों पर ही बेच दिया है। इसीलिये जहाँ इनसे कोई अाशा नहीं, वहाँ उससे और उसके जैसों से हमें किसानों के उद्धार की अाशा है। . . - हम यह कहना भूली गये कि सागरपुर में उस समय दरभंगा जिला- किसान कान्फ्रेंस थी। इसलिये किसानों के सिवाय जिले भर के कार्य- कर्ताओं का भी काफी जमाव था। प्रस्ताव तो अनेक पास हुए । सोचें भी गर्मागर्म हुई। यों तो मैं खुद काफी गर्म माना जाता हूँ और मेरी सीचें बहुत ही सख्त समझी जाती हैं। मगर जब वहाँ मैंने दो एक जवाबदेह किसान-सभावादियों की तकरीरें सुनी तो दंग रह गया । मालूम होता था, उनके हाथ में सभी किसान और सारी शक्तियाँ मौजूद हैं। फलतः वे जाई चाहेंगे कर डालेंगे। इसीलिये महाराजा दरभंगा को रह-रहके ललकारते जाते थे। मानों वह कच्चे धागा हों कि एक मकोरे में ही खत्म हो जायगे। दस बारह साल तक काम कर चुकने के बाद जब कि किसान अान्दोलन किसान संघर्ष में जुटा हो, ठीक उसी समय ऐसी गैर जवाबदेही की बातें सुनने को मैं तैयार न था। फलतः अपने भाषण में मैंने इसके लिये फट- कार सुना दी और साफ कह दिया कि दरभंगा महाराज ऐसे कमजोर नहीं हैं जैसा अापने समम लिया है। मेरे इस कथन पर जब जमींदारों के अखबार इंडियन नेशन' में टीका-टिप्पणी निकली तो मुझे और भी हैरत हुई और हमी बाई, लिखा गया कि स्वामी जी डर गये हैं। मच्ची बात तो यह है कि जमींदार इतने नादान है कि मेरी बात का मतलब न समझ सकेंगे, इसके लिये मैं तैयार न था । कित अाधार पर मुझे डरा हुया माना गया में आज तक समक न सका। (१२-८-४१) ,