पृष्ठ:किसान सभा के संस्मरण.djvu/९५

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1 (४०) सर्वत्र केवल नाव पर या पैदल ही यात्रा करनी पड़ी। जहाँ पानी न था वहाँ घुटने तक कीचड़ होने के कारण बैलगाड़ी का चलना भी तो असं- भव था। हाँ, यह कहना तो भूली गये कि उस इलाके के सबसे बड़े और चलते पुर्जे जमींदार हैं बखतियारपुर के चौधरी साहब । उनका पूरा नाम है चौधरी मुहम्मद नजीरुल हसन मुतवली । वहाँ एक दरगाह है बहुत ही प्रसिद्ध और उसी के मुताल्लिक. एक ख़ासी जमींदारी है जिसकी आमदनी कुल मिला के उस समय सत्तर अस्सी हजार बताई जाती थी.। चौधरी साहब उसी के मुतवली या अधिकारी हैं। इस प्रकार मुसलमानों की धार्मिक सम्पत्ति के ही वह मालिक हैं और उसी का. उपभोग करते हैं। बड़े ठाटबाट वाले शानदार महल बने हैं। हाथी, घोड़े, मोटर वगैरह सभी सवारियाँ हैं । शिकार खेलने में आप बड़े ही कामिल हैं, यहाँ तक कि गरीब किसानों की इज्जत जान और माल का भी शिकार खेलने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं, बशर्ते कि उसका मौका मिले । और जालिम जमींदारों को तो ऐसे मौके मिलते ही रहते हैं। उन जैसे जालिम जमींदार मैंने बहुत ही कम पाये हैं, यों तो बिना जुल्म ज्यादती के जमींदारी टिकी नहीं सकती। मेरी तो धारणा है कि किसानों और किसान हितैषियों को, किमान-सेवकों को मिट्टी के बने जमींदार के पुतले से भी सजग रहना चाहिये । वह भी कम खतरनाक नहीं होता । और नहीं, तो यदि कहीं देह पर गिर जाय तो हाथ पाँव तोड़.ही देगा। चौधरी की जमींदारी में मैं बहुत घूमा हूँ। किसानों के झोपड़े झोंपड़े में जाके मैंने उनकी विपदा आँखों देखी है और एकान्त में उनके भीषण दुख दर्द की कहानियाँ सुनी हैं । दिल दहलाने वाली घटनाओं को सुनते सुनते मेरा खून खौल उठा है। जमींदार ने किसानों को दबाने के लिये सैकड़ों तरीके निकाल रखे हैं। कूटनीति के तो वे हजरत गोया अवतार ही ठहरे । भेदनीति से खूब ही काम लेते हैं । सैकड़ों क्या हजारों तो उनके दलाल है जो खुफिया का भी काम करते हैं। किसान उनके मारे तो हई।