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कुँवर उदयभान चरित।


माला जपता हुआ पैदल था इतने में एक सन्नाटा हुआ सब घबरा गये उस सन्नाटे में से वह जो जोगी के नब्वेलाख अतीत बने थे सब के सब जोगी बने हुये मोतियों की लड़ियों के सेली तागे गलों में डाले गातियां उसी ढव की बांधे मृगछालों और बाघम्बरों पर आ टपके लोगों के जियों में जितनी उमंगें छारही थीं वह चौगुनी पचगुनी होगईं सुखपाल और चंडोलों पर और रथों पर जितनी रानियां और महारानियां लछमीवास के पीछे चली आती थीं सब गुदगदियां सी होने लगीं उस में कहीं भरथरी का स्वांग आया कहीं जोगी जैपाल आ खड़े हुए कहीं महादेव और पारवती दिखाई पड़े कहीं गोरख जागे कहीं मछन्दरनाथ भागे कहीं मच्छ कच्छ बराह सन्मुख हुए कहीं परसराम कहीं वामनरूप कहीं हरनाकस और नरसिंह कहीं राम लछमन सीता सामने आये कहीं रावन और लङ्का का बखेड़ा सारे का सारा दिखाई देने लगा कही कन्हहैया जी का जन्मअष्टमी होना और वसुदेव का गोकुल ले जाना और उनका उस रूप से बढ़ चलना और गाय चरानी और मुरली बजानी और गोपियों से धूम मचानी और राधिका रस और कुबजा का बस करलेना कहीं बनसीबट चीर घाट वृन्दावन करील की कुंज बरसाने में रहना और ऊस कन्हैया से जो जो कुछ हुआ था सब का सब ज्यों का त्यों आंखों में आना और द्वारका में जाना और वहीं सोने के घर बनाना और फिर ब्रज को न आना और सोलह सौ गोपियों का तलमलाना साम्हने आगया उन गोपियों में से ऊधो का हाथ पकड कर एक गोपी के उस कहने ने सबको रुला दिया जो उस ढब से बोल के रौंधे हुये जी को खोलती थी॥