पृष्ठ:कुमारसम्भवसार.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३४ )

२५
निशा शशी के सङ्ग, दामिनी धन के जाती,
सड़्ग-गमन की रीति जड़ों में भी दिखलाती
है वसन्त! अतएव कृपा करिए यह मुझ पर;
प्राणनाथ के पास भेजिए मुझे भस्म कर॥
२६
पति-तनु की रज रुचिर कुचों से मैं लिपटाऊँ;
पल्लव-तल्प समान अनल की सेज बनाऊँ।
बहुधा मिला सहाय सुमन-शय्या में तेरा;
प्रस्तुत कर अब चिता; विनय तुझसे यह मेर
२७
फिर मलयानिल छोड़ जलाना मुझको सत्वर;
मेरे बिना मनोज नहीं रह सकता पल भर।
देना जल की हमें एक ही अञ्जलि सादर;
उसे करेंगे पान वहाँ हम दोनों मिल कर॥
२८
महा मनोहर फूल आम की डालों वाले,
पल्लव जिनमें लगे मृदुल-तर लाले लाले।
पिण्ड-दान के समय यही रखना मुददायक;
करता है अति प्यार इन्हें मम नागर-नायक।।
२९
शुष्क-सरोवर-मध्य मीन मूर्च्छित मुरझानी,
होती है ज्यों मुदित पाय पावस का पानी।
मरण-हेतु-उद्योगवती, त्यों, मनसिज-नारी
सुन कर प्रमुदित हुई व्योम-वाणी सुखकारी॥
३०
है रति! सत्वर तुझे मिलेगा तब मनभाया;
कारण सुन जिस लिए ईश ने उसे जलाया।