पृष्ठ:कुमारसम्भवसार.djvu/४४

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( ३५ )

उसने विधि का चित्त सुत्त-अनुरक्त बनाया;
शाप-बद्ध हो, अतः, आज्ञ फल ऐसा पाया।।
३१
जब शिव-साड़्ग विवाह करेगी शैल-कुमारी,
तब अनङ्ग को अङ्ग-दान देंगे त्रिपुरारी।
ब्रह्मा ने, इस भांति, शाप की अवधि कही है;
कोप अनन्तर कृपा--बड़ों की रीति यही है।।
३२
विशदवदनि! इसलिए बना रख यह वपु सुन्दर;
यथा-समय तनु पाय, मिलेगा नेरा प्रियवर।
आतए से जो नदी निर्जला हो जाती है;
पावस में वह नया नीर पुनरपि पाती है।।
३३
छिपे छिपे, इस भॉति, किसीने वचन सुनाया;
रति का मरण विचार शिथिलता को पहुँचाया।
ऋतुनायक ने उसे विविध विध तब समझाया;
समयोचित कह कथा, युक्ति से दुःख घटाया।।
३४
तदनन्तर यो दुःख-दलिन वह मदन-वधू अति-कृशित-शरीर
करने लगी प्रतीक्षा पति की किसी भाँति धारण कर धीर।
ज्यों दिन में उत्पन्न शशि-कला छटा-क्षारण सुन्दरता-हीन्द्र
सुखकर-लायङ्काल प्रतीक्षा करती है तनु लिये मलान।।
इति चतुर्थ सर्ग।
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