पृष्ठ:कुमारसम्भवसार.djvu/४८

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( ३९ )

उस तापसी उमा का दर्शन करने आये मुलि ज्ञानी:
धर्म्म-वृद्ध में वय की लघुता कहीं नहीं जाती मानी।।
१७
जन्म-विरोधी जीवों ने भी वैर परस्पर त्याग दिया,
फल फूलों से अतिथि-जनों का तरुओं ने सत्कार किया।
नवल पर्यशालाओं में अति अमल अग्नि रहने लागी;
हुआ महा पावन वह सारा रस्य तपोवन बड़भागी।।
१८
इतना तप करने पर उसने जी में जब यह अनुमाना,
कि फल मुझे इतने से अब भी नहीं मिलगा मनमाना।
देह-मृदुलता की अनपेक्षा करके तब वह सुकुमारी,
करने लगी उसी क्षण से ही तपोविधान महाभारी।।
१९
घर पर, गेंद खेलने से भी जिसे थकावट हुई विशेष,
उसी उमा ने मुनीश्वरों के दुर्गम पथ में किया प्रवेश!
कञ्चन के कमलों से निर्म्मित था अवश्य गिरिजा का गात;
मृदुता और कठिनता दोनों जिनकी स्वाभाविक विख्यात
२०
उल सुहासिनी सिंहकटी ने, ग्रीष्मकाल में, पाचक बार,
अपने चारों ओर जला कर, मध्यभाग में आसन मार।
करके विजय नेत्र-संहारक किरणें की ज्वाला का जाल,
इकटक सूर्य्य-बिम्ब को देखा ऊँचा किये हुए निज भाल।
२१
दिनकर की मरीचि-माला से महा तप्त हो, उक प्रकार,
उसके मुख-मण्डल ने पाया सरलिज की शोभा का सार
अतिविशाल दोनों नयनों के केवल कोनों ही के पास,
श्यामलता ने, धीरे धीरे, आकर अपना किया निवास।।