पृष्ठ:कुमारसम्भवसार.djvu/५०

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कम्पित अधर-पत्र से शोभित अपना मुख-सरोज बिकसाय,
पुनरपि किया प्रफुल्लित मानों नये नीरजों का समुदाय।।
२८
वृक्षों से जो पीली पत्ती गिर कर नीचे आती है;
उसकी वृत्ति तपश्चर्य्या की सीमा समझी जाती है।
इस प्रकार के जीर्ण पणों को मी न पार्वती ने खाया;
इससे उसने नाम 'अपर्णा' इतिहासत्रों से पाया।।
२९
ऐसी कठिन तपस्या से निज कमल-नाल सम कोमल गात,
अस्थि-शेष होने तक कम कम करती हुई कृशित दिन रात।
मुनियों के कठोर अङ्गो से सञ्चित तप को बारम्बार,
मात किया शैलेश सुना ने अपने तप से भले प्रकार।।
३०
लिये मम्जु मृग-चर्म्म और शुचि किंशुक-दण्ड सनोहारी,
जालना सा वर ब्रह्मतेज से, बातों में प्रगल्म भारी।
पावन ब्रह्मचर्य्य-आश्रम की दिव्य-देह का अनुकारी,
एक बार गिरिजा के वन में आया एक जटाधारी।।
३१
भक्ति-भाव-युत शैल-सुता ने पूजा का लेकर सामान,
निज आश्रम से आगे बढ़ कर किया जाय उसका सम्मान।
सब प्रकार से सम होकर भी महा-महिम जन धर्म्म-निधान,
किसी किसी का, बड़े प्रेम से, करते हैं सत्कार महान।।
३३
विधिवत किये गये आदर का हर्ष-साहित करके स्वीकार,
क्षण भर बैठ और कर पथ के श्रम-समूह का भी परिहार
कुटिल-कटाक्ष-हान नयनों से शैलनन्दिनी ओर निहार,
किया यथाक्रम उसने अपने मधुमय वचनों का विस्तार।।