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परिच्छेद १७
ईर्ष्यात्याग

१—ईर्ष्या के विचारों को अपने मन में न आने दो, क्योंकि ईर्ष्या से रहित होना धर्माचरण का एक अङ्ग है।

२—सब प्रकार की ईर्ष्या से रहित स्वभाव के समान दूसरा और कोई बड़ा वरदान नही है।

३—जो मनुष्य धन या धर्म की परवाह नहीं करता, वही अपने पड़ौसी की समृद्धि पर डाह करता है।

४—समझदार लोग ईर्ष्याबुद्धि से दूसरो को हानि नहीं पहुँचाते, क्योकि उससे जो खोटा परिणाम होता है, उसे वे जानते है।

५—ईर्ष्यालु के लिए ईर्ष्या ही पूरी बला है, क्योंकि उसके वैरी उसे चाहे क्षमा भी कर दे तो भी वह उसका सर्वनाश ही करेगी।

६—जो मनुष्य दूसरों को देते हुए नहीं देख सकता, उसका कुटुम्ब रोटी और कपड़ों तक के लिए मारा मारा फिरेगा और नष्ट हो जायगा।

७—लक्ष्मी ईर्ष्या करने वाले के पास नही रह सकती, वह उसकी अपनी बड़ी बहिन दरिद्रता की देखरेख में छोड़कर चली जायगी।

८—दुष्टा ईर्ष्या दरिद्रता दानवी को बुलाती है और मनुष्य को नरक के द्वार तक ले जाती है।

९—ईर्ष्या करने वालों की समृद्धि और उदारचित्त पुरुषों की कङ्गाली ये दोनों ही एक समान आश्चर्यजनक है।

१०—न तो ईर्ष्या से कभी कोई फूला फला और न उदारहृदय कभी वैभव से हीन ही रहा।