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पृष्ठ:कुरल-काव्य.pdf/१७०

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निर्लोभिता

१—जो पुरुष सन्मार्ग छोड़ कर दूसरे की सम्पत्ति लेना चाहता है उसकी दुष्टता बढ़ती जायगी और उसका परिवार क्षीण हो जायगा।

२—जो पुरुष बुराई से विमुख रहते है वे लोभ नहीं करते और न दुष्कर्मों की ओर ही प्रवृत्त होते है।

३—जो मनुष्य अन्य लोगों को सुखी देखना चाहते है, वे छोटे मोटे सुखों का लोभ नही करते और न अनीति का ही काम करते है।

४—जिन्होंने अपनी पाँचों इन्द्रियों को वश में कर लिया है और जिनकी दृष्टि विशाल है, वे यह कह कर दूसरे की वस्तुओं की कामना नहीं करते, और हाँ हमे इनकी अपेक्षा है।

५—वह बुद्धिमान् और समझदार मन किस काम का जो लालच में फँस जाता है और अविचार के कामो के लिए उतारू होता है।

६—वे लोग भी जो सुयश के भूखे है और सन्मार्ग पर चलते हैं, नष्ट हो जायेगे, यदि धन के फेर में पड़कर कोई कुचक्र रचेगे।

७—लालच द्वारा एकत्रित किये हुए धन की कामना मत करो, क्योंकि भोगने के समय उसका फल तीखा होगा।

८—यदि तुम चाहते हो कि हमारी सम्पत्ति कम न हो तो तुम अपने पड़ोसी के धन-वैभव को ग्रसने की कामना मत करो।

९—जो बुद्धिमान मनुष्य न्याय की बात को समझता है और दूसरो की वस्तुओं को लेना नहीं चाहता, लक्ष्मी उसकी श्रेष्ठता को जानती है और उसे ढूँढती हुई उसके घर जाती है

१०—दूरदर्शिताहीन लालच नाश का कारण होता है, पर जो, यह कहता है कि मुझे किसी वस्तु की आकांक्षा ही नहीं, उस तृष्णाविजयी की 'महत्ता' सर्वविजयी होती है।