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कुरल का उल्लेख आया है उनमें सबसे प्रथम अधिक प्राचीन 'शिलप्पदिकरम्' नाम का जैनकाव्य और 'मणिमेखले' नामक बौद्धकाव्य है। दोनों का कथा-विषय एक ही है तथा दोनों के कर्ता आपस में मित्र थे। अतः दोनों ही काव्य सम-सामयिक है और दोनों में कुरल काव्य के छठे अध्याय का पाँचवाँ पद्य उद्धृत किया गया है। इसके अतिरिक्त दोनों में कुरल के नाम के साथ ५४ श्लोक और उद्धृत हैं। 'शिलप्पदिकरम्' तामिल भाषा के विद्वानों का इतिहासकाल जानने के लिए सीमानिर्णायक का काम करता है और इसका रचनाकाल ऐतिहासिक विद्वानों ने ईसाकी द्वितीय शताब्दी माना है।

(३) यह भी जनश्रुति है कि तिरुवल्लुवर का एक मित्र एलेलाशिङ्गन नाम का एक व्यापारी कप्तान था। कहा जाता है कि यह इसी नामके चोलवंश के राजा का छठा वंशज था, जो लगभग २०६० वर्ष पूर्व राज्य करता था और सिंहलद्वीप के महावंश से मालूम होता है कि ईसासे १४० वर्ष पूर्व उसने सिंहलद्वीप पर चढ़ाई कर उसे विजय किया और वहाँ अपना राज्य स्थापित किया। इस शिङ्गन और उक्त पूर्वज के बीच में पाँच पीढ़ियाँ आती हैं और प्रत्येक पीढ़ी ५० वर्ष की माने तो हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि एलेलाशिङ्गन ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी में थे।

बात असल में यह है कि एलाचार्य का अपभ्रंश एलेलाशिङ्गन हो गया है। यह एलेलाशिङ्गन और कोई नहीं एलचार्य ही हैं। कुन्दकुन्दाचार्य ऐलक्षत्रियों के वंशधर थे, इसलिए इनका नाम एलाचार्य था।

इन पर्याप्त प्रमाणों के आधार पर हमने कुरलकाव्य का रचनाकाल ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी निश्चित किया है और यही समय अन्य ऐतिहासिक शोधों से श्री ऐलाचार्य का ठीक बैठता है। मूलसंघ की उपलब्ध दो पदावलियों में तत्वार्थसूत्र के कर्ता उमास्वाति के पहिले श्री एलाचार्य का नाम आता है और यह भी प्रसिद्ध है कि उमास्वाति के गुरु श्री एलाचार्य थे। अतः कुरल की रचना तत्वार्थसूत्र के पहले की है। यह बात स्वतः सिद्ध हो जाती है।