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परिच्छेद ३३
अहिंसा

१—अहिंसा सब धर्मों में श्रेष्ठ है। हिंसा के पीछे सब प्रकार के पाप लगे रहते है।

२—क्षुधावाधितों के साथ अपनी रोटी बाँट कर खाना और हिंसा से दूर रहना, यह सब धर्म उपदेष्टाओं के समस्त उपदेशों में श्रेष्ठतम उपदेश है।

३—अहिंसा सब धर्मों में श्रेष्ठ धर्म है। सच्चाई की श्रेणी उसके पश्चात् है।

४—सन्मार्ग कौनसा है? यह वही मार्ग है जिसमे छोटे से छोटे जीव की रक्षा का पूरा ध्यान रखा जावे।

५—जिन लोगों ने इस पापमय सांसारिक जीवन को त्याग दिया है उन सब में मुख्य वह पुरुष जो हिंसा के पाप से डर कर अहिंसामार्ग का अनुसरण करता है।

६—धन्य है वह पुरुष जिसने अहिसाव्रत धारण किया है। मृत्यु जो सब जीवों को खा जाती है उसके सुदिनो पर हमला नहीं करती।

७—तुम्हारे प्राण संकट मे भी पड़ जावे तब भी किसी की प्यारी जान मत लो।

८—लोग कहते है कि बलि देने से बहुत सारे वरदान मिलते है, परन्तु पवित्रहृदय वालों की दृष्टि में वे वरदान जो हिंसा करने से मिलते है जघन्य और घृणास्पद हैं

९—जिन लोगों का जीवन हत्या पर निर्भर है, समझदार लोगों की दृष्टि में वे मृतकभोजी के समान हैं।

१०—देखो, वह आदमी जिसका सड़ा हुआ शरीर पीवदार घावों से भरा हुआ है, वह पिछले भवों में रक्तपात बहाने वाला रहा होगा, ऐसा बुद्धिमान लोग कहते है।