पृष्ठ:कुरल-काव्य.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८०
 

 

प‌रिच्छेद ३६
सत्य का अनुभव

क्षण भंगुर संसार में, कोई वस्तु न सत्य।
दुःखित जीवन भोगते, वे जो समझें सत्य॥१॥
भ्रान्ति-भाव से मुक्ति हो, जो नर निर्मल दृष्टि।
दुःखतिमिर उसका हटे, और मिले सुख-सृष्टि॥२॥
जिसने छोड़ असत्य को, पाया सत्य प्रदीप।
पृथ्वी से भी स्वर्ग है, उसको अधिक समीप॥३॥
कभी न चाखा सत्य यदि, जो है शाश्वत अर्थ।
मनुजयोनि में जन्म भी, लेना तब है व्यर्थ॥४॥
इसमें इतना सत्य है, शेष मृषाव्यवहार।
ऐसा निर्णय वस्तु का, करती मेघासार॥५॥
धन्य पुरुष, स्वाध्याय से, जिसके सत्य विचार।
शिव-पथ के उस पान्थ को, मिले न फिर संसार॥६॥
ध्यानाधिक से प्राप्त हो, जिसको सत्य अपार।
भावी जन्मों के लिए, उसे न सोच विचार॥७॥
शुद्ध ब्रह्ममय आप हो, करे अविद्या दूर।
जो जननी भर रोग की, वही बुद्धि गुण पूर॥८॥
शिव साधन का विज्ञ जो, मोह विजय संलग्न।
उसके भावी दुःख सब बिना यत्न ही भग्न॥९॥
काम क्रोधयुत मोह भी, ज्यों ज्यों होगा क्षीण।
त्यों अनुगामी दुःख भी, होते अधिक विलीन॥१०॥