सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कुरल-काव्य.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८६]
 

 

परिच्छेद ३९
राजा

राष्ट्र, दुर्ग, मंत्री, सखा, धन, सैनिक नरसिंह।
ये छै जिसके पास हैं, भूपों में वह सिंह॥१॥
साहस, बुद्धि, उदारता, कार्यशक्ति आधार।
आवश्यक ये सर्वथा, भूपति में गुण चार॥२॥
शासक में ये जन्म से, होते अतिशय तीन।
छानवीन, विद्याविपुल, निर्णयशक्ति प्रवीन॥३॥
कभी न चूके धर्म से, पापों को अरि रूप।
हठ से रक्षक मान का, वीर वही सच भूप॥४॥
शासन के प्रति अंग में, कैसे हो विस्फूर्ति।
और वृद्धि निज कोष की, क्योंकर होगी पूर्ति॥
धन का कैसा आय व्यय, क्या रक्षा कर्तव्य।
निजहितकांक्षी भूप को, ये सब हैं ज्ञातव्य॥५॥ (युग्म)
जिस भूपति के पास में, पहुँच सके सब राज्य।
परुष वचन जिसके नहीं, उसका उन्नत राज्य॥६॥
जिसका शासन प्रेममय, तथा उचित प्रियदान।
उस नृप की शुभ कीर्ति का, भूभर में सम्मान॥७॥
न्याय करे निष्पक्ष हो, पालन की रख देव।
ऐसा भूपति धन्य है, पृथ्वी में वह देव॥८॥
कर्णकटुक भी शब्द जो, सुन सकता भूपाल।
छत्रतले वसुधा बसे, उस नृप के सब काल॥९॥
जो नृप न्याय, उदारता, सेवा, करुणाज्योति।
भूपों में उस भूप की, सब से उज्ज्वल ज्योति॥१०॥