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सम्मतियाँ

वीणानिनाद इव श्रोत्रमनोहरश्रीर्भव्यप्रभातमिव सुप्तविबोधदक्ष।
सत्सङ्गम सुहृदिव प्रतिमातिवर्ती दिष्टादुदेति कृतिना कविताकलाप॥
सत्सारसै सततसेवितपादपद्म सद्मामल किमपि वाचि विदग्धताया।
गोविन्दरायरचित कविताविलासो जीयाच्चिर कुरलकाव्यकलाश्रितश्री॥

झाँसीमण्डलमण्डन सहृदय विद्वद्वर पं॰ गोविन्दरायविरचित संस्कृत-हिन्दीकाव्यपरिणत तामिलभाषानिबद्ध कुरल महाकाव्य को मैंने घण्टों सतृष्ण हृदय से सुना। वह प्रसन्नव्युत्पत्ति-सम्पत्तिसभृत सुन्दर और मनोहर रचना तथा उसकी एकान्तनिष्ठा है।

इस अनुपम काव्य से भारतीय नवयुवकों को उत्साह, कर्तव्यपरायणता, जागरण और सदुपदेश का अभ्यर्थनीय लाभ होगा। मैं इस काव्य का दिनोंदिन अभ्युदय और भारतीय प्रबुद्ध समाज में व्यापक प्रचार का पूर्ण समर्थन हार्दिक भावना से करता हूँ।

दिनाङ्क
२८-१०-४५
रविवार

महादेव शास्त्री पाण्डेय
न्यायव्याकरण, साहित्याचार्य, कवि तार्किक चक्रवर्ती
अध्यक्ष—साहित्य विभाग, ओरिएण्टल कॉलेज
काशी विश्वविद्यालय

प्रज्ञाचक्षु पं॰ श्री गोविन्दराय शास्त्री ने तामिल वेद कुरल काव्य का हिन्दी और संस्कृत पद्यमय अनुवाद किया है, उसको मैंने सुना। तामिल भाषा के श्रेष्ठ ग्रन्थरत्न का आस्वादन सारे देश को कराने के दो ही साधन हैं—संस्कृत और हिन्दुस्तानी। दोनों के द्वारा कुरल का परिचय कराके पंडित जी ने देश की अच्छी सेवा की है।

कुण्डेश्वर, टीकमगढ़ — काका कालेलकर।
११-६-४९

प्रसन्नता हुई, आपने सरल और ललित संस्कृत तथा हिन्दी भाषा में त्रिक्कुरल तैमिल ग्रन्थकी रचना सुनाई। आपको इससे बड़ा आनन्द मिलता होगा तथा सहारा हो गया है। इसके पाठ से विषयवासना की प्रवृत्ति से मन छूटता और आन्तरिक जगतका आनन्द मिलता है।

काशी विश्वविद्यालय — मदनमोहन मालवीय।
५-१०-४५