परिच्छेद ५१
विश्वस्त पुरुषों की परीक्षा
१—धर्म, अर्थ, काम और प्राणों का भय, ये चार कसौटियाँ है जिन पर कस कर मनुष्य को चुनना चाहिए।
२—जो अच्छे कुल में उत्पन्न हुआ है, दोषों से रहित है और अपयश से डरता है वही तुम्हारे लिए योग्य मनुष्य है।
३—जब तुम परीक्षा करोगे तो देखोगे कि अत्यन्त ज्ञानवान और शुद्ध-मन वाले लोग भी हर प्रकार के अज्ञान से सर्वथा अलिप्त न निकलेगे।
४—मनुष्य की भलाइयों को देखो और फिर उसकी बुराइयों पर दृष्टि डालो। इनमे जो अधिक है, बस समझ लो वैसा ही उसका स्वभाव है।
५—क्या तुम जानना चाहते हो कि अमुक मनुष्य उदारचित्त है या क्षुद्रहृदय? स्मरण रक्खो कि आचार-व्यवहार चरित्र की कसौटी है।
६—सावधान! उन लोगों का विश्वास देखभाल कर करना कि जिनके आगे पीछे कोई नहीं है, क्योकि उन लोगों का हृदय ममताहीन और लज्जारहित होता है।
७—यदि तुम किसी मूर्ख को अपना विश्वासपात्र सलाहकार बनाना चाहते हो, केवल इसलिए कि तुम उसे प्यार करते हो, तो सोच रक्खो कि वह तुम्हे अनन्त मूर्खताओं में ला पटकेगा।
८—जो आदमी परीक्षा लिये बिना ही दूसरे मनुष्य का विश्वास करता है, वह अपनी संत्तति के लिए अनेक आपत्तियों का बीज बो रहा है।
९—परीक्षा किये बिना किसी का विश्वास न करो और अपने आदमियों की परीक्षा लेने के अनन्तर हर एक को उसके योग्य काम दो।
१०—अनजाने मनुष्य पर विश्वास करना और जाने हुए योग्य पुरुष पर सन्देह करना, ये दोनों ही बाते एक समान अगणित आपत्तियों की जननी है।