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  कुरल काव्य तामिल भाषा के छन्दों में है। इसके रचयिता श्री १००८ कुन्दकुन्दाचार्य हैं। आपके द्वारा समयसारादि ८४ पाहुडो की रचना हुई है, जिनके द्वारा वर्तमान समय में गणधरदेव सदृश उपकार हो रहा है।

उनके द्वारा रचित कुरल ग्रन्थ का अनुवाद संस्कृत तथा भाषा छन्द तथा भाषा गद्य में श्रीमान् पं॰ गोविन्दराय शास्त्री ने महान् परिश्रम के साथ किया है, जिसको पढ़कर मनुष्यमात्र आत्मीय कर्तव्य को जान सकता है।

क्षेत्रपाल, ललितपुर गणेश वर्णी।
भादो बदी १२ सं २००८

कुरल का हिन्दी और संस्कृत दोनों अनुवाद कुछ कुछ देख गया, प्रसन्नता हुई। यह ग्रन्थ नीति और धर्मबोध की उत्तम शिक्षा देगा। इसके अलावा दक्षिण और उत्तर भारत को जोड़ने में मदद देगा। भारत देश की सांस्कृतिक एकता कितनी गहरी है यह इसके अवलोकन से लोगों के दिलों में स्पष्ट हो जायगी। संस्कृत का मद्रास में बहुत प्रचार होगा। हिन्दी तो उत्तर और दक्षिण दोनों में विजयशाली हो सकेगी। आपके परिश्रम के लिए धन्यवाद है।

महरौनी — बिनोवा।
१०-१०-५१

श्रीमान् विद्वद्वर्य गोविन्दराय जी शास्त्री करके अनूदित तामिल कुरल काव्यके कतिपय छन्दोंको श्रवण कर हृदय आल्हादपूर्ण हुआ। हिन्दीप्रसार के इस युग में अतीव प्राचीन अनुभवपूर्ण विद्वत्कृतियों की प्रभावना शास्त्रीसदृश उद्भट विद्वानों करके ही हो सकती है। हिन्दी भाषा के गरीयत्व को यह रचना पुष्ट करती है।

सहारनपुर

स्नेहानुरक्तमना
माणिकचन्दः कौन्देयः न्यायाचार्यः

वैशाख कृ १२ सं॰ २००५