परिच्छेद ६०
उत्साह
१—वे ही सम्पत्तिशाली कहे जा सकते है जिनमे उत्साह है और जिनमे यह उत्साह नही है वे क्या वास्तव में अपने धन के स्वामी है?
२—पुरुषार्थ ही यथार्थ में मनुष्य की सच्ची सम्पत्ति है, क्योकि दूसरी सम्पति तो स्थायी नहीं रहती, वह तो मनुष्य के हाथ से एक दिन अवश्य ही चली जावेगी।
३—वे मनुष्य धन्य है, जिनके हाथ में अटूट उत्साह रूपी साधन है, उनको यह कहकर कभी निराश न होना पड़ेगा कि हाय! हाय हमारा तो सर्वनाश हो गया।
४—धन्य है वह पुरुष जो परिश्रम से कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई आती है।
५—झाड़ तथा पौधों को सीचने के लिए जो पानी दिया जाता है उससे जिस प्रकार अच्छी बहार का पता लगता है, उसी प्रकार आदमी का उत्साह उसके भाग्यशीलता का परिचायक है।
६—अपने उद्देश्यों को उदात्त बनाये रहो, कारण यदि वे विफल रहे तो भी तुम्हारे यश को कलङ्क न लगेगा।
७—साहसी पुरुष पराजित होने पर भी निरुत्साहित नहीं होते। हाथी तीखे वाणों के गहरे आघात होने पर अपने पैरों को और भी दृढता से जमा देता है।
८—उन पुरुषों को देखो जिनका उत्साह शनै शनै क्षीण होरहा है। अपार उदारता के वैभव का आनन्द उनके भाग्य मे नही है।
९—जब हाथी सिंह को अपने ऊपर आक्रमण के लिए तैयार देखता है तब उसका हृदय बैठ जाता है। बताइये इतना बड़ा शरीर और उसके सुतीक्ष्ण लम्बे दाँत किस काम के?
१०—अपार उत्साह ही शक्ति है। जिसमे उत्साह नहीं वे तो निरे पशु है, उनका मानवशरीर तो एक मात्र शारीरिक विशेषता को ही प्रगट करने वाला है।