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परिच्छेद ७८
वीर योद्धा का आत्मगौरव

१—अरे ए वैरियो! मेरे स्वामी के सामने युद्ध में खड़े न होओ क्योंकि पहिले भी उसे बहुत से लोगों ने युद्ध के लिए ललकारा था, पर आज वे सब चिंता के पाषाणो में पड़े हुए है।

२—हाथी के ऊपर चलाया गया भाला यदि चूक भी जाय तब भी उसमे अधिक गौरव है अपेक्षा उस बाण के जो खरगोश पर चलाया गया हो और वह उस को लग भी गया हो।

३—वह प्रचण्ड साहस जो प्रबल आक्रमण करता है, उसी को लोग वीरता कहते है, लेकिन उसका गौरव उस हार्दिक औदार्य में है कि जो अध पतित शत्रु के प्रति दिखाया जाता है।

४—एक योद्धा ने अपना भाला हाथी के ऊपर चला दिया और वह दूसरे भाले की खोज में जा रहा था कि इतने में उसने एक भाला अपने शरीर मे ही घुसा हुआ देखा और ज्यो ही उसने उसे बाहिर निकाला यह प्रसन्नता से मुस्करा उठा।

५—धीर पुरुष के उपर भाला चलाया जावे और उसकी आँख तनिक भी भूपक मार जावे तो क्या यह उसके लिए लज्जा की बात नहीं है?

६—शूरवीर सैनिक जिन दिनों अपने शरीर पर गहरे घाव नहीं खाता है, वह समझता है कि वे दिन व्यर्थ नष्ट हो गये।

७—देखो, जो लोग अपने प्राणों की परवाह नहीं करते बल्कि पृथ्वी भर मे फैली हुई कीर्ति की कामना करते है, उनके पाँव की बेड़ियां भी आँखों को आल्हादकारक होती है।

८—जो चोर योद्धा, युद्धक्षेत्र में मरने से नहीं डरते वे अपने सेना- पति की कड़ाई करने पर भी सैनिक नियमों को नहीं छोड़ते।

९—अपने हाथ में लिए हुए काम को सम्पादन करने के उद्योग में जो लोग अपने प्राण गवाँ देते है उनको दोष देने का किसको अधिकार है?

१०—यदि कोई आदमी ऐसा मरण पा सके कि जिसे देखकर उसके मालिक की आँख से आँसू निकल पड़े तो भीख मागकर तथा विनय प्रार्थना करके भी ऐसी मृत्यु को प्राप्त करना चाहिए।