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परिच्छेद ८०
मित्रता के लिए योग्यता की परख

१—इससे बढ़कर अप्रिय बात और कोई नहीं है कि बिना परीक्षा किये किसी के साथ मित्रता करली जाय, क्योंकि एक बार मित्रता हो जाने पर सहृदय पुरुष फिर उसे छोड़ नहीं सकता।

२—जो पुरुष पहिले आदमियों की जाँच किये बिना ही उनको मित्र बना लेता है वह अपने शिर पर ऐसी आपत्तियों को बुलाता है कि जो केवल उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त होंगी।

३—जिस मनुष्य को तुम अपना मित्र बनाना चाहते हो उसके कुल का उसके गुण दोषों का, कौन कौन लोग उसके साथी है और किन किनके साथ उसका सम्बन्ध है इन बातों का अच्छी तरह से विचार कर लो और उसके पश्चात् यदि वह योग्य हो तो उसे मित्र बना लो।

४—जिस पुरुष का जन्म उच्च कुल में हुआ है और जो अपयश से डरता है उसके साथ, आवश्यकता पड़े तो मूल्य देकर भी मित्रता करनी चाहिए।

५—ऐसे लोगों को खोजों और उनके साथ मित्रता करो कि जो सन्मार्ग को जानते है और तुम्हारे बहक जाने पर तुम्हें झिड़क कर तुम्हारी भर्त्सना कर सके।

६—आपत्ति में एक गुण है-वह एक नापदण्ड है जिससे तुम अपने मित्रों को नाप सकते हो।

७—निस्सन्देह मनुष्य का लाभ इसी में है कि वह भूखों से मित्रता न करे।

८—ऐसे विचारों को मत आने दो जिनसे मन निरुत्साह तथा उदास हो और न ऐसे लोगों से मित्रता करो कि जो दुःख पड़ते ही तुम्हारा साथ छोड़ देगे।

९—जो लोग संकट के समय धोखा दे सकते है उनकी मित्रता की स्मृति मृत्यु के समय भी हृदय में दाह पैदा करती है।

१०—पवित्र लोगों के साथ बड़े चाव से मित्रता करो, लेकिन जो अयोग्य है उनका साथ छोड़ दो, इसके लिए चाहे तुम्हे कुछ भेट भी देना पड़े।