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पृष्ठ:कुरल-काव्य.pdf/२९६

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परिच्छेद ८१
घनिष्ट मित्रता

१—वही मैत्री घनिष्ट है जिसमे अपने प्रीतिपात्र की मर्जी के अनुकूल व्यक्ति अपने को समर्पित करदे।

२—सच्ची मित्रता वही है जिसमे मित्र आपस में स्वतंत्र रहे और एक दूसरे पर दबाव न डाले। विज्ञजन ऐसी मित्रता का कभी भी विरोध नही करते।

३—वह मित्रता किस काम की, जिसमे मित्रता के नाम पर ली गई किसी काम की स्वतन्त्रता में सहमति न हो।

४—जब कि दो व्यक्तियों में प्रगाढ़ मैत्री है उनमे से एक दूसरे की अनुमति के बिना ही कोई काम कर लेता है तो दूसरा मित्र आपस के प्रेम का ध्यान करके उससे प्रसन्न ही होगा।

५—जब कोई मित्र ऐसा काम करता है जिसमे तुम्हे कष्ट होता है तो समझ लो कि वह मित्र तुम्हारे साथ या तो परिपूर्ण मैत्री का अनुभव करता है या फिर अज्ञानी है।

६—सच्चा मित्र अपने अभिन्न मित्र को नहीं छोड़ सकता, भले ही वह उसके विनाश का कारण क्यो न हो।

७—जो व्यक्ति किसी को हृदय से और दीर्घकाल से प्रेम करता है वह अपने मित्र को घृणा नही कर सकता, भले ही वह उसे बार बार हानि क्यों न पहुँचाता हो।

८—उन व्यक्तियों के लिए जो अपने अभिन्न मित्र के विरुद्ध किसी प्रकार का आरोप सुनने से इनकार कर देते है, वह दिवस बड़ा आनन्दप्रद होता है जब कि उसका मित्र आरोपकों को हानि पहुँचाता है।

९—जो व्यक्ति दूसरे को अटूट प्रेम करता है उसे सारा संसार प्रेम करता है।

१०—जो व्यक्ति पुराने मित्रों के प्रति भी अपने प्रेम में अन्तर नहीं आने देते उन्हें शत्रु भी स्नेह की दृष्टि से देखते है।