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परिच्छेद ८३
कपट-मैत्री

१—जो मित्रता, शत्रु दिखाता है वह केवल निहाई है जिसके आश्रय से मौका मिलने पर वह तुम्हें लोहे के समान पीट देगा।

२—जो लोग ऊपर से तो स्नेह दिखाते हैं परन्तु मनमे वैर रखते हैं उनकी मित्रता कामिनी के हृदय समान थोड़ी सी अवधि में बदल जायगी।

३—व हे उसका ज्ञान किन ना ही महान और पवित्र हो, शत्रु के लिए यह फिर भी असम्भव है कि उसके प्रति जो घृणा है उसे हृदय से निकाल दे।

४—उन दुष्ट चालबाजों से डरते रहो कि जो सब के सामने ऊपरी मनसे तो हँसते है पर भीतर ही भीतर हृदय मे भारी विद्वेष रखते है।

५—उन आदमियों को देखो जिनका हृदय तुम्हारे साथ बिल्कुल नहीं है परन्तु जिनके वचन तुम्हे आकर्षित करते है ऐसे लोगों में सर्वथा विश्वास न रक्खो।

६—एक बैरी पल भर मे ही खुल जायगा यद्यपि वह मित्रता की बड़ी मृदुल भाषा बोलता हो।

७—यदि वैरी विनम्र वचन बोले तो उसका विश्वास न करो क्योंकि धनुष जितना ही अधिक झुकेगा उतना ही अधिक अनिष्ट सूचक होगा।

८—शत्रु यदि हाथ जोड़े और आँसू भी बहावे तो भी उसकी प्रतीति न करो सम्भव है कि उसके हाथो मे कोई हथियार छुपा हो।

९—ऐसे आदमी को देखो, जो जन समाज में तुम्हारा आदर करता है परन्तु एकान्त में घृणा करने के लिए हँमता है उसकी प्रत्यक्ष- रूप में चाटुकारी करो लेकिन उसे समय मिलते ही कुचल दो चाहे वह मित्रता के आलिङ्गन मे ही क्यों न हो।

१०—यदि शत्रु तुमस मित्रता का ढोंग करता है और तुम भी अभी उससे खुला वैर नही कर सकते हो तो तुम भी उससे मित्रता का ढोंग रचो पर मनसे उसे सदा दूर रक्खो।