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परिच्छेद ९१
स्त्री की दासता

१—जो लोग अपनी स्त्री के श्री चरणों की अर्चना में ही लगे रहते हैं वे कभी महत्व प्राप्त नहीं कर सकते और जो महान कार्यों के करने की उच्चाशा रखते है वे ऐसे निकृष्ट प्रेम के पाश में नही फँसते।

२—जो आदमी अपनी स्त्री के असीम मोह में पड़ा हुआ है, वह अपनी समृद्धिशाली अवस्था में भी लोगो में हास्यस्पद हो जायगा और लज्जा से उसे अपना मुंह छिपाना पड़ेगा।

३—वह नामर्द जो अपनी स्त्री के सामने झुककर चलता है, सत्पात्र पुरुषो के सामने वह सदा शरमावेगा।

४—शोक है उस मुक्ति-विहीन अभागे पर जो अपनी स्त्री के सामने काँपता है, उसके गुणों का कभी कोई आदर न करेगा।

५—जो आदमी अपनी स्त्री से डरता है वह गुरुजनों की सेवा करने का भी साहस नही कर सकता।

६—जो लोग अपनी स्त्री की कोमल भुजाओं से भयभीत रहते हैं वे यदि देवो के समान भी रहे तब भी उनका कोई मान न करेगा।

७—जो मनुष्य चोली-राज्य का आधिपत्य स्वीकार करता है, उसकी अपेक्षा एक लजीली कन्या में अधिक गौरव है।

८—जो लोग अपनी स्त्री के कहने में चलते हैं वे अपने मित्रों की आवश्यकताओ को भी पूर्ण न कर सकेगे और न उनसे कोई शुभ काम ही हो सकेगा।

९—जो मनुष्य स्त्री-राज्य का शासन स्वीकार करते है उन्हे न तो धर्म मिलेगा और न धन, इनके सिवाय न उन्हे अखण्ड प्रेम का आनन्द ही मिलेगा।

१०—जिन लोगों के विचार महत्वपूर्ण कार्यों मे रत है और जो सौभाग्य-लक्ष्मी के कृपापात्र है वे अपनी स्त्री के मोहजाल में फंसने की कुबुद्धि नहीं करते।