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परिच्छेद ९०
महत्त्व

१—महान कार्यों के सम्पादन करने की आकांक्षा को ही लोग महत्त्व के नाम से पुकारते है और ओछापन उस भावना का नाम है जो कहती है कि मैं उसके बिना ही रहूँगी।

२—उत्पत्ति तो सब लोगों की एक ही प्रकार की होती है परन्तु उनकी प्रसिद्धि में विभिन्नता होती है, क्योकि उनके जीवन में महान्अ न्तर होता है।

३—उत्तम कुल में उत्पन्न होने पर भी यदि कोई सच्चरित्र नहीं है तो वह उच्च नहीं हो सकता और हीनवंश में जन्म लेने मात्र से कोई पवित्र आचार वाला नीच नहीं हो सकता।

४—रमणो के सतीत्व की तरह महत्त्व की रक्षा भी केवल अन्तरात्मा की शुद्धि से ही की जा सकती है।

५—महान् पुरुषों में समुचित साधनो को उपयोग में लाने और ऐसे कार्यों के सम्पादन करने की शक्ति होती है कि जो दूसरो के लिए असाध्य होते है।

६—छोटे आदमियों के बीज का ही यह विशेष दोष है कि जो वे महान् पुरुषों की प्रतिष्ठा, उनकी कृपादृष्टि और अनुग्रह को प्राप्त करने की चेष्टा नही करते।

७—ओछी प्रकृति के आदमियों के हाथ यदि कही कोई सम्पत्ति लग जाय तो फिर उनके इतराने की कोई सीमा ही न रहेगी।

८—महत्ता सर्वथा ही विनयशील और आडम्बर रहित होती है, परन्तु क्षुद्रता सारे संसार में अपने गुणों का ढिंढोरा पीटती फिरती है।

९—महत्ता सदैव अपने से छोटों के प्रति भी सदय और नम्न व्यवहार ही करती है, परन्तु क्षुद्रता को तो घमण्ड की मूर्ति ही समझो।

१८—बडापन सदैव ही दूसरों के दोषों को ढँकने के यत्न में रहता है, पर ओछापन दूसरों के दोषों को खोजने के सिवाय और कुछ करना ही नही जानता।