परिच्छेद ९९
योग्यता
ईप्सित, जिसको योग्यता, देख बृहत्तर कार्य।
वे उसके कर्तव्य में, जो दें गुण का कार्य॥१॥
सभ्यों का सौन्दर्य है, उनका पुण्य-चरित्र।
रूप जिसे कुछ भी अधिक, करता नहीं विचित्र॥२॥
सब से उत्तम प्रीति हो, सब से सद्व्यवहार।
आच्छादन पर-दोष का, लज्जा उच्च उदार॥
पक्ष सदा हो सत्य का, सब गुण हों निर्दम्भ।
सदाचार के पाँच ही, ये होते हैं स्तम्भ॥३॥ (युग्म)
ऋषियों का ज्यों धर्म है, करना करुणा-भाव।
भद्रों का त्यों धर्म है, तजना निन्दक-भाव॥४॥
लघुता और विनम्रता, सबल शक्ति असमान।
शत्रुविजय में भद्र को, ये हैं कवच-समान॥५॥
जाँचन को नर योग्यता, यही कसौटी एक।
लघु का भी आदर जहाँ, होता सहित विवेक॥६॥
बढ़ी चढ़ी भी योग्यता, दिखती तब है व्यर्थ।
सभ्य नहीं बर्ताव जब वैरी के भी अर्थ॥७॥
निर्धनता के दोष से, होते सब गुण मन्द।
फिर भी शुभ आचार से, बढ़ता गौरवकन्द॥८॥
त्यागें नहीं सुमार्ग जो, पाकर विपदा-कार्य।
सीमा हैं योग्यत्व की, प्रलयावधि वे आर्य॥९॥
भद्रपुरुष जब त्याग दे, हा हा भद्राचार।
तब ही मानव-जाति का, धरिणी सहे न भार॥१०॥