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काव्य संसार के लिए वरदानस्वरूप है। जो भी इसका अध्ययन करेगा वही इस पर निछावर हो जावेगा। हम अपनी इस धारणा के समर्थन में तीन अनुवादकों के अभिमत यहां उद्धृत करते हैं—

१. डॉ॰ पोपका अभिमत—मुझे प्रतीत होता है कि इन पद्योंमें नैतिक कृतज्ञता का प्रबल भाव, सत्य की तीव्रशोध, स्वार्थरहित तथा हार्दिक दानशीलता एवं साधारणतया उज्ज्वल उद्देश्य अधिक प्रभावक है। मुझे कभी कभी ऐसा अनुभव हुआ है कि मानो इसमें ऐसे मनुष्यों के लिए भण्डार रूप में आशीर्वाद भरा हुआ है जो इस प्रकार की रचनाओं से अधिक आनन्दित होते हैं और इस तरह सत्य के प्रति क्षुधा और पिपासा की विशेषता को घोषित करते हैं। वे लोग भारतवर्ष के लोगों में श्रेष्ठ हैं तथा कुरल एवं मालदी ने उन्हें इस प्रकार बनाने में सहायता दी है।

२. श्री वी॰ वी॰ एस॰ अय्यर का अभिमत—कुरलकर्ता ने आचार धर्म् की महत्ता और शक्ति का जो वर्णन किया है उससे संसार के किसी भी धर्मसंस्थापक का उपदेश अधिक प्रभावयुक्त या शक्तिप्रद नहीं है। जो तत्व इसने बतलाये हैं उनसे अधिक सूक्ष्म बात भीष्म या कौटिल्य कामन्दक या रामदास विष्णुशर्मा या माई॰ के॰ वेली ने भी नहीं कही है। व्यवहार का जो चातुर्य इसने बतलाया है और प्रेमी का हृदय और उसकी नानाविधि वृत्तियों पर जो प्रकाश डाला है उससे अधिक पता कालिदास या शेक्सपियर को भी नहीं था।

श्री राजगोपालाचार्य का अभिमत—'तामिल जाति की अन्तरात्मा और उसके संस्कारों को ठीक तरह से समझने के लिए 'त्रिक्कुरल' का पढ़ना आवश्यक है। इतना ही नही, यदि कोई चाहे कि भारत के समस्त साहित्य का मुझे पूर्णरूप से ज्ञान हो जाय तो त्रिक्कुरल को बिना पढ़े हुए उसका अभीष्ट सिद्ध नहीं हो सकता।

त्रिक्कुरल, विवेक, शुभसंस्कार और मानव प्रकृतिके व्यावहारिक ज्ञान की खान है। इस अद्‌भुत ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता और चमत्कार यह है कि इसमें मानवचरित्र और उसकी दुर्बलताओं की तह तक विचार करके उच्च आध्यात्मिकता का प्रतिपादन किया