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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१०

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"अर्धाटतघटितं घटयति, सुघटितघटितानि दुर्घटीकुरुते । बिधिरेव तानि घटयति, यानि पुमान्नैव चिन्तयति ॥” ..( सूक्तिः वत् १८६७ वैक्रमीय (सन् १८४० ई०) से हमारे । स उपन्यास की कथा प्रारंभ होती है। सारन जिले में, 'गंडकी नदी के दाहिने किनारे पर 05 'गंगा और गंडकी' के संगम के निकट, सोनपुर क एक छोटी सी बस्ती है। वहांपर 'मही' नाम की एक छो नदी के निकट ' श्रीहरिहरनाथजी' का एक प्राचीन मंदिर पर हरसाल कार्तिकी-पूर्णिमा पर 'हरिहरक्षेत्र' नाम का ए सेद्ध मेला होता है जो किसारे के मेलों में उत्तम अ