पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/११२

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परिद) स्वायकुसुम। १०३ चुन्नी, (ताज्जुब से) "क्या कहा, तुमने ? " झगरू,--"क्या, अभी तुम्हारी बेहोशी दूर नहीं हुई !" चुन्नी,--"क्या मैं बेहोश होगई थी!" झगरू,-"यह तो तुम्ही जानो, और फ़कत तुम्ही बेहोश हुई हो, सो भी नहीं है; यहां तो सारे दाई-चाकर बेहोश पड़े हुए हैं ! चुन्नी,--(ताज्जुब से) "ऐसा!" झगरू,---"हां. ऐसा! सुनो, मैं सुबह पांच बजे के तड़के यहां आया, पर जब खून गाला फाड़ने और फाटक भड़भड़ाने पर भी किसीने दर्वाजा न खोला तो मैं बहुत ही हैरान हुआ और मोसने लगा कि यह क्या बात है ! आखिर बड़ो बड़ी मुश्किलों से मैं धाग की दीवार लांघकर अन्दर आया और आकर क्या देखता हूं, कि, 'बाग के अन्दर जितने औरत-मर्द हैं, वे सभी बेहोश पड़े हुए है।' यह तमाशा तुम खुद भी देख सकती हो, क्योंकि अभी मैं फ़कत तुम्हीं को होश में लाया हूं और बाकी सभी दाई-नौकर बेहोश पड़े यह सुन और घबराकर चुन्नी उठ खड़ी हुई, पर अपने आंचल में अजायब-घर कीताली न देख फिर पलंग पर बैठ गई और झगरू स्दै बोली.-"मेरे आँचल में हम्माम-भर की ताली बंधी हुई थी, लो क्या हुई !, भगरू,--(मुह बिचकाकर) "यह तो तुम्ही को मालूम होगा!" चुन्नी,---(झल्लाकर) 'बस, चुप रहो, चोचले रहने दो और यह बतलाओ कि ताली क्या हुई ? मंगरू,-"वाह, तुम तो खूछ बहकी-यह की बातें कर रही हो!" चुन्नी,---"बस, बस, बहुत हुआ: लाओ, मेरी ताली दो।" झगरू,--"जान पड़ता है कि किसी शैतान ने तुम्हारे साथ पूरी ऐयारी की है और मेरी गैर-मौजूदगी में तुम-सभों को बेहोश करके हम्माम की ताली साफ़ उड़ा ली है !!!" चुन्नी,-(ताव-पेच खाकर ) "वह शैतान तुम्ही हो और तुम्हीं ने चोहों की तरह बाग में आ और नींद में गाफिल बाग के सन्द सामियों को यहां तक कि मुझे भी बेहोश कर के मेरे आंचल में से हम्माम की ताली बुराली है और अम बातें बना रहे हो!" यह सुनकर भगक भी मार गुस्से का घर थर कांपने लगा मौर