पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म्वगायकुसुम (बत्तीसवा __ कसम इसमे भा कोई शक है खैर कहा सीधी तरह से कसम खाते हो, या निकालं छुरी !" बसन्न,-"अरे ! यह तो वही नाव-चाली बात आई! खैर, प्यारी ! लो, मैं तुम्हारी कसम, खाता हूं कि जो तुम कहोगी, वह मैं करूंगा।" कसम,-तुम्हें अपनी शादी करनी होगी और अपने समाज में कायम रहना होगा।" बसन्त यह अनोखो बात सुनते ही हक्का-बक्का सा हो कुसुम का मुंह निहारने लगा। इस पर कसम ने कहा,-"तुम इस तरह आंखें फाड़-फाड़ कर मेरी ओर देखते क्या हो ? यह बात मैंने कुछ दिल्लगी के तौर पर नहीं कही है, बल्कि तुम्हारी शादी का सारा इन्तजाम करके नत्र आज इस बात की तुम्हें इत्तिला दी है।" यह कह कर उसने कलमदान में से एक चिठो निकाल कर पसल के हाथ पर धरी और कहा ज़रा इसे तो पढ़ो !" बसन्त ने बड़े गौर से उस चिट्ठी को पढ़ा और ताज्जुब में भाकर कहा,-"अरे ! क्या यह चिट्ठी भी सञ्चा है ?" कसम,--"क्या तुम इसे भी बिल्कुल झूठी समझते हो? बसन्त,-अगर यह सच है तो बड़े ही ताज्जुब और साथ ही खुशी की भी बात है।" कुमम,--"अब नारायण खुशी-ब-खुशी इस सम्बध को करादे तो बड़ी बात हो।" बसन्त,.."चाहे जो कुछ हो, पर इतने बड़े खान्दानको लड़की मुझे मिले, यह क्या कुछ कम अचरज की बात है ! ! जिनकी यह चिट्ठी है, या जिनकी लड़की से मेरी शादी की बात चीत की गई है, वे बिहार के एक नामी रईस और जिमीदार हैं। लेकिन और मैं कौन हूं, इसे वे तो क्या, अभी तुमभी नहीं जानता।" कसम,-"जी ऐसा न समझिएगा, दुनियां में ऐसी कोई बात ही नहीं है. जो कुसुम न जानता हो ! " बसन्त (ताज्जुब से) ऐं क्या तुम मेरा हाल मा जानती