पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१३९

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स्वगायकुसुम । ( सेहरा) जौहरी लाया है. इधर लाई है मालन सेहगा। सायए कान गुहर हामिले गुलशन मेहरा ॥ मरदुर्मे दीदः को भी तात्र नज़ारा न हो। नेखें मिजगां को न श्यों डालके चिल्वन सेहरा ॥ इम रमाई से बढ़ी उम्र गुलो गौहर की। आगया है जो नेरे ना सरे दामन सेहत ॥ हर लड़ी गौहगे याकूता जमुद की बनी। चश्म बद्द र जवाहिर का है मादन सेहरा ।। सजरे तूर के क्या फूल गंधे हैं इसमें । हमने देखा नहीं. इस तरह का गैशन लेहरा मयने समझा कि ये चलना है जमी पर खुर्शद रुखे नौशह से जो सरका सरे दामन मेहरा ॥ हूर को भी यह तमन्ना है कि मालन बननी । इसमें यह शन है, 'गंधेगी सुगगन ' महा। भर दिए दाग़ ने गुलहाय मज़ामी इममें। क्या अजब गाए अगर बुल्बुले गुलशन सेहग! " (मुबारकबादी)

  • शा दिए जलवये गुलफाम मुबारक होवे।

प्रेमी इशरत का मराजांस मुवारक होवे।। बाद मुद्दत के हसीनों का नमीबा जागा; फर्श राहत पै अब आराम मुबारक होवे ॥ मर्थ कमरी को, मज़ावार हो, बुलबुल को गुल । हमको यह पर्व गुल-अन्दाम मुबारक होवे ॥ पी चुके खूने निगर हिज्र मे जी भर भर के । शरबते वम्ल का अत्र जाम मुबारक होवे ॥ न पर हमको मुबारक हो जहाँ मे फिरना । गैर को गरदिशे ऐयाम मुबारक होवे ॥ हो चुके इश्क में बदनाम बड़ी मुहत नक । अब जमाने में हमे नाम मुबारक होवे ॥ के न फन्द में फंस नायर दिल