परिच्छेद ) कुसुमकुमारी। १३१ . गेसुओं का हमे अब दाम मुबारक होवे । हरे जन्नत की मुबारक हों फलक के तारे। बाग़ को गुल, हमे गुल्फाम मुबारक होवे ॥ छीन शहजादे का अव राजा न हमसे उस्ताद । ये अमानत सहरे शाम मुबारक होवे !" निदान. याही वूच हमी खुशी के साथ राजा कर्णसिंह की कन्या-अर्थात् कुसुमकुमारी की छोटी बहिन गुलायदेई-से बसन्त कमार का व्याह होगया और कुसुम ने भी आज भरी महफ़िल में खूब खुले दिल से नाच-गाकर अपने जी का हौसला पूरा किया। किन्तु, पाठक ! यह क्या बान है ? क्या कुसुम की सगी बहिन के संग हा बसन्तक मार का व्याह हुआ? हां, यह बात बिल्कल सही है । जिम लडकी के साथ असन्तक मार का ब्याह हुआ था, वह सचमुच क सुम की छोटी वहिन ही थी और नाम उसका गुलाबदई था। बात यह थी कि चुन्नी के मरने पर जब क सुमन भेगसिंह के मार्फत अपने बाप के यहां का पता लगवाया, तो उसे यह बात मालूम हुई कि. 'उसके एक छोटे भाई के अलावे एक छोटी बहिन मी है।' यह हाल जानकर कुसुम ने भैरोसिंह के मार्फत अपनी छोटी और सहोदरा बहिन के साथ बसन्तक मार की शादी एकी की और चुपचाप अपनी मारी दौलत भी उम (वनस्तकमार ) के नाम लिम्वदी थी। यदि कुसुम को स्पनी छोटी बहिन का होना न मालूम होना नो वह वमन्त की शादी की उतनी फिक्र करती या नहीं, यह हम नहीं कह सकते. किन्तु अपनी एक कारी बहिन की मौजूदगी का हाल सुन कर कुसुम फड़क उठी और उसने हज़ार हजार कोशिशे कर के अपनी संगी वहिनकी अपने प्रान से भी बढ़कर प्यारे बसन्त के साथ शादी काही डाली। यह काम कुसुम ने किसी स्त्रार्थ से किया था. या निम्स्त्रार्थ- भाव मे; यह तो वहीं जाने पर इतना तोहम जरूर कहेंगे कि उसने अपने प्यारे की शादी मच्चे जी से दिल खोलकर करदी थी और अपने दिल का मारा प्यार अपनी सगी और छोटी बहिन पर F कर दिया था।
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