पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१५

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स्वर्गीयकुसुम [तीसरा


जेब से अबी पांच रुपया इनाम डेटा और एक रुपिया मुशहरा टरक्की डेकर चौकीडारों का हेड बनाया।"

यो कहकर साहब ने पांच रुपए उस चौकीदार को दिए और उसने लेकर बड़ा लंबा सलाम किया और कहा,-" हरिहरनाथ बाबा हुजर को लाट बनावें।"

फिर मजिष्ट्रेट -साहब डाकृर-साहब से अंग्रेजी में बातें करने लगे, पर हम अपने हिन्दी-जानने-वाले पाठको के सुभीते के लिये हिन्दी ही में उन-दोनों की बातें लिखते है।

मजिष्ट्रट ने सिविलसर्जन से कहा,-"अब आप लाश पाने से लेकर मुर्दे के जिन्दह होने तक का हाल कह जाइए।"

सर्जन,-"शाम के वक्त दो लाशें मेरे तंबू में पहुंची, गनीमत हुई कि मैं उस वक्त मौजूद था; अगर ज़रा और देर हुई होती तो मैं हवा खाने निकल गया होता और अजब नहीं कि तब वे दोनों लाशें वाकई मुर्दो में ही शुमार की जाती।

"मैंने फ़ौरन उन दोनों लाशों की जांच करनी शुरू की और पंद्रह मिनट की जांच में उन लाशों में जान पाई गई; तब मैंने पूरे तौर से इलाज करना शुरू किया और आधी रात के वक्त इन दोनों को ( उंगली से औरत और मर्द की और इशारा करके) होश हो आया । तब मैंने इन दोनों को दूध दिया, दवा के साथ शराब पिलाई और मुस्तैदी के साथ इलाज जारी रक्खा। सुबह चार बजे के वक्त ये दोनों पूरे तौर से चंगे होगए, तब बड़े तड़के मैंने आपको खबर दी और आपकी मर्जी के मुताबिक इन दोनों को आपके पास लेकर हाजिर हुआ।"

मजिष्ट्रेट,-"मैं इस मुस्तैदी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया अदा करता हूं। बेशक, आपने अपने दर्जे के लायक काम किया। मैं आपकी तरक्की के लिये लाटसाहब को बहुत जल्द लिखूंगा।"

यह सुन डाकृर ने धन्यवाद (थैक्स) देकर मजिष्ट्रट की इज्जत की और फिर मजिस्ट्रेट ने उस नौजवान लड़की से कहा, " अब तुम अपना बयान शुरू करो।”

लड़की.-(सलाम करके ) "मेरा नाम कुसुमकुमारी है। मैं आरे की रहनेवाली हूँ। हमलोग सात आदमी परसों शाम को पटने से डोगी पर सवार हुए उनमें मैं, मेरी मा एक मजदुरनी दो नौकर