पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वर्गीयकुसुम । (मंत्तीसवा अड़तीसवां परिच्छेद. GUE GAUR एकीकरण । "एक वस्तु द्विधा कत, बहवः सन्ति धन्विनः। धन्दी समार एवैको, द्वयोरैक्य करोति यः॥ (सुभाषिते.) वाज कुसुमकुमारी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। जो खशी लोगों को अपने व्याह में होती है, उससे ड़ दर्जे बढ़कर-खुशी कुसुम के दिल में अपने प्यारे बसन्त या अपनी प्यारी बहिन गुलाब के ब्याह से ई। और फिर ऐसा क्यों न होता, जबकि इस ब्याह की करने रनेवाली केवल कुसुम ही थी और बड़ी बडी कोशिशों से उसने पने मन के माफ़िक यह ब्याह कराही छोड़ा था । संसार में श्रयों के लिये सौत से बढ़कर और कोई ज्वाला नहीं है, पर इस यानक आग को भी कुसुम ने बर्फ की तरह ठढी बना डाला, र अपनी-पालन करनेवाली दुष्टा चुन्नी के भयानक पापों का रायश्चित्त गुलाब के साथ बसन्त का विवाह कराकर कर डाला; पोंकि भैरासिंह-नहीं, नहीं. मोतीसिंह-की जिस दौलत को न्नी ने बहुत ही बुरी तरह हथिया लिया था, उस दौलत को मोती- उह के किसी नजदीकी रिश्तेदार के हवाले करता कुसुम ने नासिब समझा था, गुलाब के अलावे मोतीसिंह का कोई करीबी इतेदार था नहीं, इसलिए उसी कोमातीसिंह को सारी सम्पत्ति दे लिना कुसुम ने बहुत मुनासिब समझा और उसने इस बढ़ियां जनक बना देने के लिये भगवान को कोटि कोटि धन्यवाद या; यह बानक कैसा बना, इस पर ज़रा ध्यान तो दीजिए,- रोसिंह उर्फ मोतीसिंह की दौलत बड़े अन्याय से चुनी ने थिया ली, चुन्नी के डूब मरने पर वह दौलत कुसुम के हाथ लगी, फर कुसुम ने उस दौलत को बसन्त के नाम लिख-पढ़ दिया; सके बाद जब भैरोसिंह की जीवनी से यह बात मालूम हुई कि, इमैरोसिंह नहीं, बल्कि इस दौलत के वाजिबी हमदार खुद