पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/२१६

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परिच्छेद) कुसुमकुमारी। २०७ पचपना परिच्छेद पितवियोग "लोकान्तरे गतासि त्व, तातेदानी हताऽस्म्यहम् । किंकरोमिक्कगच्छामि, को मांशान्ति प्रदास्यति ॥" (पद्मपुराणे ) दान ! वह दिन गुलाब की चालाकी से बड़े मन में बीना और दूसरे दिन जाकर दोनों बहिनें अपने पिता से मिलीं। अनूपसिंह और उसकी स्त्री ने कुसुम को उसी स्वातिर से अपने घर में उताग, जिम खानिर से कि गुलाब को उतारा था। राजा कर्णसिंह ने कुसुम को बड़े स्नेह में अपने पास बैठाकर उसका सिर संघा और देरतक वे उसके साथ बातें करते रहे। उमा अवसर मे कुसुम की जवानी उन्होंने त्र्यम्बक का हाल भी सुना था। उन्होंने कुसुम से कहा कि,-बेटी! मैं ती अब इस समार से कूच करता है, पर यह भविष्यवाणी' मैं कहे जाता हूं कि, 'अब देवनाओं को कन्याएं न चढ़ाई जायंगी।" यह सुनकर कुसुम को बड़ी खुशी हुई। राजा कर्णसिंह कुसुम की जीवनी सुनकर जैसे दुखी हुए थे, यह बात हम कह आए हैं। बस, उसी शोक में गलते गलने चे इन दशा को पहुंचगए थे ! उनकी यह हालत देखकर उनमे गुलाम ने कुसुम के जहर खाने का हाल नही कहा था। हां, अनूपसिंह से यह हाल कह दिया गया था। दो रोज बाद राजा कर्णसिंह ने इस अमार संसार को छोड़ दिया। उनकी इस मृत्यु से गुलाब को जितना शोक हुआ था, कुसुम को उससे कम शोक न हुआ. बरन इसका (कुसुम) का शोक और भी बढ़गया था, जब उसने अपनी हान्दन और अपनी माता को याद किया था; अम्नु । ___ उनके क्रिया-कर्म मे लुट्टी पाने पर अनूपसिंह ने कुसुम को एक दानपत्र दिया जिसम कण म. कुसुम का अपना बटी म्बीका