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२६
आठवा
स्वर्गीयकुसुम

आराम से बैठ गई। इसके बाद मियां-साहब ने आकर बड़े तपाक के साथ आदाबअर्ज की और चटाई पर पालथी जमाई। थोड़ी देर तक दोनों चुप रहे, पर जब कुसुम उसकी ओर ज़रा भी रुजल हुई, तब उस बेचारे ने आप ही अपनी ज़बान-शोरी की बानगी दिखलाई । उसने कहा," आपका मिजाज़ तो अच्छा है ? " कुसुम,-( उसकी ओर विना देख्ने ही)" बहुत ही अच्छा!" थानेदार,-" जनाब ! मुझे आपकी वालिदह-साहिबा के डूबने का सखत रंज है, लेकिन क्या करूं, लाचारी है ! मेरे पैरबी करने में तो कोई कसर न थी, मगर आस्मानी गर्दिश से क्या चारा है ?" कुसुम,― दुरुस्त" थानेदार,-"आप तो मुझे पहिचानती हैं न ? मैं सोनपुर का थानेदार हूं और मेरा नाम करीमबखश- ---" कुसुम,-( उसे रोककर)"बखूबी ! मजिष्टर साहबने आप ही को न काम से मुअत्तल किया था ? थानेदार,-(शर्माकर) " जी हां, मगर आप ही की सिफ़ा- रिश से तो मैं फिर वहाल किया गया! पल, मैं इसका शुक्रिया अदा करने आया हूँ।" कुसुम,-" खैर, उसकी अब कोई जरूरत नहीं है, पस, आप अपने आने का कोई खास सबव वतलाइए, क्योंकि मुझे फुर्सत नहीं है, इसलिए मैं बहुत जल्द आपसे रुखसत होऊगी।" थानेदार,-" मगर क्यों बी-आन ! मैं इतनी दूर से आपके दरे-दौलत तक दौड़ा हुआ आया और आप ऐसी वेमुरौवतो जाहिर करती हैं ! क्या यही वफ़ादारी या यही शत्ते-यारी है ?" कुसुम,-(चिटककर) "अच्छा, अब आप रुखसत होइए।" यह कहकर वह उठने लगी, पर थानेदार ने बड़ी ही आजिजी से उसे जरा ठहरने के लिये कहकर यों कहा,-"सुनिए, फ़क़त दो बातें मेरी और सुनकर तब आप उठिए । कुसुम,-"जल्द कहिए?" थालेदार,-"आप कोई फुर्सत का निराला वक्त मुझे बतलावे, जिस वक्त मैं आकर आपकी कदमबोसी हासिल करू ?" कुसुम,-' मुझे किसी से मिलने या बात करने की