और रोगी की चिकित्सा में पूरी स्वाधीनता की आज्ञा पाकर बाबूसाहब के दिए हुए कई आदमियों और भैरों सिंह के साथ अपने डाक्टरी के सब समान और कई शागिर्दो को साथ लेकर उधर को ओर कूंच किया। बाबुसाहब की यह नेमथा कि अपनी प्रजा को किसी तरह की विपद में फंसी देखकर वे हर-तरह से उसकी मदद करते थे। उनके वैद्य, हकीम और डाकृर बिना कुछ लिये ही-गरीब और अमीर- लभीके घर जा-जा-कर चिकित्सा करते और बाबूसाहब भी गुप्त-रीति से इस बात की पूरी जांच किया करते थे कि,-'हमारे वैद्य, हकीम, या डॉक्टर ने किसीकी दवा-दारू में कुछ ढील तो नहीं की, या किसी से कुछ लिया तो नहीं!' यही कारण था कि उनके समय में आरे- वालों को ऐसा सुख प्राप्त था कि जिसका बखान नहीं किया जा सकता। निदान, बाबूसाहब के कई आदमियों और डॉक्टर को साथ लिए हुए भैरोंसिह उस जगह पहुंचा, जहां पर (सिद्धनाथजी के पास ही) कई लोग खाटपर मुर्दे की हालत में पड़े सिसकते हुए बसन्तकुमार की रखवाली कर रहे थे। डॉक्टर ने रोगी की हालत देखकर उसे बेहोशी की कोई दवा पिलाई और फिर खाट उठवा कर भैरोसिंह के साथ पैर बढ़ाया। सिद्धनाथजी के पास ही गंगा (१) नदी के ऊपर कुसुमकुमारी का एक बहुत ही सजीला,-सुहावना और हराभरा बाग़ था, तथा अमीरों और ऐय्याशों के आराम की सभी चीज़ों से वह सजा हुआ था। डॉक्टर की सलाह से भैरोंसिंह उसी वाग़ में बसन्तकुमार को ले गया, तब डॉक्टर ने उसकी मरहम-पट्टी करनी प्रारंभ की। भैरोंसिंह ने डॉक्टर से पूछा, "आप इनकी कैसी हालतदेखते हैं ?” डॉक्टर,-"बहुत ही खराब : यद्यपि इनके बदन पर लाठी और तल्वार के उन्नीस घाव लगे हैं, पर सबसे गहरा और जान लेनेवाला इनके सिर का घाव है, जो किसी मजबूत लाठी की चोट से हुआ है, पर हां! यदि टांके देने के बाद चौबीस घंटे तक इनका दम न निकला तो फिर मैं इनकी जान का बीमा ले सकूँगा। भैरोंसिंह,-"ता फिर तब तक बीवीसाहिबा की इनके पास तक आने देना ठीक नहीं हैं ?"
(१) यह एक नाला है जिसमें बसंत के दिनों में गंगा का जल है और नाव भी चलती है