पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/६४

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च्छेद ]

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'कुसुमकुमारी

प्यारे तेरे बिरह की, अगिनि जरावत गात।

हाय-हाय मुख तें कढ़ै, धीरज धन्यो न जात ॥ ११ ॥

प्यारे बिकल बिहाल यह, चलन चहत अब प्नान ।

मिलिहौ पुनि तुम कौन सों, समुझत नाहि सुजान ॥ १

प्यारे हिये लगाइकै, खोलि कंचुकी-बंद।

हँसि, अधरामृत पान करि, मन भरि लेहु अनद ॥ १३

प्यारे तेरे बिरह की, लगी करेजे तीर ।

हँसि लपटाइ निकारि तेहि, कब हरिहौ हिय-पीर ।। १

प्यारे प्रीति लगाइ कै, जनि बिसरावहु पीर ।

अबलौं तुमरी आस में, तजतन प्रान सरीर ॥१५॥

प्यारे अब तो बिरह की, भभकि उठी हिय आग।

छिपै छिपाए कौन बिधि, लगी लालची लाग ॥१६॥

प्यारे अब जिय लगत नह, घर-बन पार-परोस।

कहूँ सबेरे, साँझ कहुँ, कहूँ रात कहुँ घोस ॥ १७ ॥

प्यारे तुम सीखे अबै, 'नहीं' 'नहीं' की बानि ।

'हां' 'हां' जो कहिदेहु तौ, कौन तुम्हारी हानि ॥ १॥

प्यारे छल कीनो बड़ो, छीनि लियो मन मोर ।

बे-मन करि अब तो हमैं, बात बनावत जोर ॥ १६॥

प्यारे मन में आन है, मुख ते भाषत आन ।

कहु सांची मनभावते, नतरू तजत हम प्रान ॥ २०॥

प्यारे नेह-निवाह नहिं, कियो दियो दुख मोहि ।

हाय अधिक अब का कहौं, हृदय सराहत ताहि ॥ २१॥

प्यारे घंघट-खोलि के, विहंसि चितौनि चलाय।

वसीकरन जो कीन तौ, क्यों न मिलत मन-भाय ॥ २२॥

प्यारे फांसी प्रेम की, डारि लियो मन छोरि ।

अब वह तेरे कर पन्यो, कैसे छुटै बहोरि ॥ २३ ॥

प्यारे रस की रीति है, जैसे ऊख-सुभाय।

जहाँ गाँठ तह रस नहीं, विन गाँठहि रस पाय ॥२४॥

प्यारे निठुराई तजौ, हम गरीब लवलीन ।

दरस-सुधा-रस पान बिन, ब्याकुल यह दृग-मीन ॥ २५

प्यारे जल तें विछुरि कै, मरत मीन अकुलाय!

तयौं दया जल के हिये नेकु न आवत हाय ॥ २६ ॥