प्यारे चातक रटत है, स्वाति-बुंद की चाह ।
पै स्वाती मेटत नहीं, चातक-चित की दाह ॥२७॥
प्यारे मरत चकोर है,चंदचाह में चूर ।
पै चकोर की चाह कों, चंद न जानत क्रूर ॥२८॥
प्यारे चाहत हंस तौ, मान-सरोवर बास।
मानसरोवर को नहीं, हसहिं देखि हुलास ॥ २६ ॥
प्यारे दीपक-जोति पर, जरि-जरि मरत पतंग ।
पै दीपक नहिं देत है, वा पतंग को संग॥३०॥
प्यारे लखि धनघोर चहुँ , करत सोर बन मोर ।
पै घन तनिक न देखई. हरषि मोर की ओर ॥ ३१ ॥
प्यारे रस-बस ह्वै मरत, भौंर केतकी-माँहि ।
पै वा केतकि के हिये, नेकु भौंर-दुख नाहिं ॥३ु२॥
प्यारे सूनी सेज पै, लहर उठत जिय जोर ।
जैसे मावस-रैन में, व्याकुल होत चकोर ॥ ३३ ॥
प्यारे बिनु यह जामिनी, अतिहि तपावत अंग।
मनहुँ दुपहरी जेठ की, करत पथिक-सँग जंग ॥ ३६
प्यारे तुमरे दरस बिन, तरफरात मन मोर।
ज्यों गरजन सुनि मेघ की, बिन तेहि देखे मोर ॥ ३५
प्यारे यो तरस्यो करत, लहि मन मदन-झकोर।
ज्यों चकवा नित जामिनी,-माहिं चहत है भोर ॥ ३६
प्यारे चकवा-जुगल नित, भेटत बीते रात।
हमारे-तुमरे मिलन कों, कब ह्वै है परभात ॥ ३७॥
प्यारे तो-बिन निठुर यह, मैन जरावत देह ।
याके सीतल करन कों, बरसहु बारि-सनेह ॥ ३८॥
प्यारे यों तरफत रहौं, ज्यों जल के ढिग मीन ।
सबौं न लेत अँकोर भरि, यह सुभाव अब कीन ॥ ३६
प्यारे नेह-बिहीन मन, तुव लखि मो-मन रंज।
ज्यों सूखे सरवर गये, फिरत निरासहिं खंज ॥ ४० ॥
प्यारे तेरो प्रेम-रस,-सागर सुरस अथाह ।
तन तैन्यो, मन बूडिगो, पायो पार न थाह ॥ ४१ ।।
प्यारे तेरे नेह की, नदी विमल गंभीर।
मन अरु नैन फ्यिासही, मस्त न पावत नीर ॥ ४२ ॥