पारद ) कुसुमकुमारा। हाल मैं फिर किसी समय अर्ज करूंगा। अच्छा तो अब आप उसकी सैर करने चले!" फिर तो कुसुम और बसन्त को साथ लिये हुए औरोसिंह उस हम्माम में पहुंचा और अन्दर से उस घर का दर्वाजा बन्द करके उसने मोमबत्ती जलाई। वह कोठरी बीस फुट लम्बी और उतनी हो चौड़ी (चौखूटी) पत्थरो से बनी हुई थी और उसके ऊपर गुम्बज बना हुआ था। उसके बीचोबीच कोठरी के चौथाई हिस्से में एक गोल हौज बना हुआ था और एक और दीवार में छोटासाजल भरने का टांका बना हुआ था, जिसमें जल भरने से वह भीतर ही भीतर उस होजवाली टोंटी के रास्ते से हौज में भर जाता और यदि उस टोंटी में हज़ारा लगा दिया जाता तो सारी कोठरी में उसकी धारा गिरती और कोठरी का पानी मोरी के रास्ते से बाहर निकल जाता। हां, यदि हौज का पानी साफ़ करना होता तो उलच उलच कर वह निकाला जाता। बस, इतना हाल तो उस कोठरी या हम्माम का सब लोग जानने थे. मगर इसके अलावे वहांका और जो कुछ हाल था, वह नीचे लिखा जाता है। उस टोंटी में एक ताला भी था. इमलिये जब तक वह ताला न खोल दिया जाता, टोंटी ऊपर को न खिंचती और सुरंग का द_जा भी न खुलता। उसी टोटी में एक गोल छेद था, जिसमें ताली लगाई जाती था और वह ताली भैरोसिंह के कगो में थी। निदान, ताला खोलने पर टोंटी को ऊपर की तरफ़ बैंचते ही हम्माम के फर्श की एक सगमर्मर की पटिया हलकी आवाज के साथ नीचे झूलगई और सीढ़ियों से उतरकर नीनों आदमी उस म्याह पत्थर से बनी हुई चौकोर कोठरी में पहुंचे, जिसमें भैरोसिह ने करीमवरश आदि को लाकर कैद किया था। जिस दर्वानी से वे लोग उस कोठरी मे पहुंचे थे, वह दर्वाज़ा उत्तर की ओर, अर्थात् दक्खिन रुख का था। उस कोठरी में पहुंच कर भैरोसिंह ने बसंतकुमार और कुसुम- कुमारी की ओर देखकर यों कहा,- देखिए, यद्यपि यह कोठरी स्याह पत्थरों से बनी हुई है और इसमें किसी आर भी भमो काई दवा का निशान नहीं मालूम वा
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